संवैधानिक निकाय - निर्वाचन, लोक सेवा, वित्त आयोग एवं अन्य
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संवैधानिक निकाय - निर्वाचन, लोक सेवा, वित्त आयोग एवं अन्य
वित्त आयोग एवं राज्य वित्त आयोग के कार्य -
संविधान के अनुच्छेद 280 में वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।
वित्त आयोग के गठन का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है
वित्त आयोग में राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यक्ष तथा 4 सदस्य नियुक्त किए जाते हैं।
वित्त आयोग के अध्यक्ष या सदस्यों की योग्यता क्या होगी इसका निर्धारण करने का अधिकार संसद को दिया गया है।
वित्त आयोग का अध्यक्ष वही व्यक्ति होगा जिसे सार्वजनिक मामलों में पर्याप्त अनुभव प्राप्त हो तथा चार सदस्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होने योग्य व्यक्तियों या व्यक्ति मामलों या प्रशासन में पर्याप्त अनुभव अथवा अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों में से नियुक्त किए जाएंगे।
वित्त आयोग केंद्र तथा राज्यों के वित्तीय संबंधों के संबंध में सिफारिश करता है। आयोग द्वारा पेश की गई सिफारिशों को राष्ट्रपति संसद के पटल पर रखता है।
वित्त आयोग का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है
राज्यों में अनुच्छेद 243 के अंतर्गत 5 वर्ष के लिए राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाता है।
निर्वाचन आयोग -
संविधान के भाग 15 में निर्वाचन आयोग का वर्णन किया गया है। यह एक स्वतंत्र निकाय है।
अनुच्छेद 324 के अनुसार इस संविधान के अधीन संसद और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने के लिए और उन सभी निर्वाचनों के संचालन के लिए निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार निर्वाचन आयोग को है।
निर्वाचन आयोग का गठन एक मुख्य चुनाव आयुक्त एवं दो सहायक चुनाव आयुक्तों से होता है।
निर्वाचन आयोग का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष मुख्य चुनाव आयुक्त के लिए एवं 62 वर्ष अन्य चुनाव आयुक्त के लिए होता है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को महाभियोग जैसी प्रक्रिया के द्वारा हटाया जा सकता है तथा अन्य आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकता है किंतु ध्यान रखिएगा महाभियोग सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रपति के ऊपर लगाया जाता है बाकी लोगों को साबित कर आचार एवं और समर्थन के आधार पर उन को पद से हटाया जाता है।
61 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1989 के माध्यम से वयस्क मताधिकार की उम्र सीमा 18 वर्ष कर दी गई है जिसे अनुच्छेद 326 के तहत बताया गया है।
निर्वाचन आयोग से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न -
मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करता है - राष्ट्रपति
चुनाव विवादों में अंतिम निर्णय की उद्घोषणा का अधिकार है - भारत के सर्वोच्च न्यायालय को
महिलाओं को सर्वप्रथम मताधिकार प्रदान करने वाला देश - न्यूजीलैंड
दिनेश गोस्वामी समिति का संबंध है - चुनाव सुधारों से इलेक्ट्रॉनिक मशीनों से मतदान की सिफारिश दिनेश गोस्वामी जी ने किया था।
मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई - 61 वें संविधान संशोधन 1989 द्वारा।
भारत के संविधान में दल बदल विरोधी कानून विषय प्रावधान से संबंधित अनुसूची है - दसवीं अनुसूची
लोक सेवा आयोग -
संविधान में संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग गठन अनुच्छेद 315 के तहत किया गया है।
भारत में भारत सरकार अधिनियम 1919 के द्वारा तथा ली कमीशनकी संस्तुतियों के आधार पर 1926 ई. में लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई।
संविधान के अनुच्छेद 312 में नई लोक सेवाओं के गठन का अधिकार राज्य सभा को दिया गया है।
संघ लोक सेवा आयोग एवं संयुक्त लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
अजय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है।
ध्यान दीजिए उपरोक्त सभी को राष्ट्रपति की संस्तुति पर हटाया जा सकता है।
लोक सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यकाल अधिकतम 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र तक होता है जबकि राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की उम्र तक होता है।
राजभाषा आयोग -
अनुच्छेद 343 से 351 तक - संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 344 में राष्ट्रपति को राजभाषा से संबंधित कुछ विषयों में सलाह देने के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है।
राष्ट्रपति ने इस अधिकार का प्रयोग करते हुए 1955 में श्री बिजी खरे के अध्यक्षता में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया।
इस आयोग ने 1956 में अपना प्रतिवेदन दिया।
असमिया, बंगला, गुजराती, हिंदी,
कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी,
उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, हिंदी,
तमिल, तेलुगू, उर्दू, कोंकणी,
मणिपुरी, नेपाली, मैथिली, संथाली,
डोगरी और बोडो।
ध्यान दीजिए 1967 ई. में संविधान के 21वें संशोधन के द्वारा सिंधी को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया जबकि 1992 ई. में संविधान के 71 में संशोधन के द्वारा मणिपुरी को कड़ी एवं नेपाली को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया तथा 1992 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2003 ई. के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में मैथिली, संथाली, डोंगरी एवं बोडो भाषा को जोड़ा गया।
उच्चतम और उच्च न्यायालयों तथा विधान मंडलों की भाषा संविधान में प्रावधान किया गया है कि जब तक संसद द्वरा कानून बनाकर अन्यथा प्रावधान न किया जाए, तब तकउच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी होगी और संसद तथा राज्य विधान मंडलों द्वारा पारित कानून अंग्रेजी में होंगे।
नोट : संविधान के अधीन किसी भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में नहीं अपनाया गया है, इसके अधीन हिंदी को केवल राजभाषा के रूप में रखा गया है। अर्थात भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है।