रुस के शासक को जार कहा जाता था। क्रांति के समय रोम न बन सका निकोलस द्वितीय रुस का जार था। उसकी पत्नी जरीना पथभ्रष्ट पादरी रास्पुटिन के प्रभाव मे थी।
जार अलेक्सेंडर द्वितीय ने 1862 ई. मे दास प्रथा का अंत कर दिया था, इसलिए उसे जार मुक्तिदाता कहा गया।
22 जनवरी 1905 के दिन जार के पास जा रहै भूखे मजदूरो के समूह पर सेना ने गोलियाँ बरसाईं। इसे खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
रुसी क्रांति का तात्कालिक कारण प्रथम विश्व युद्ध मे रुस की पराजय था।
7 फरवरी, 1917 को रुस मे क्रांति का प्रथम विस्फोट हुआ। विद्रोहियो ने रोटी-रोटी का नारा लगाते हुए सडको पर प्रदर्शन करना शुरु कर दिया।
जार की सेना ने विद्रोहियो पर गोली चलाने से इंकार कर दिया।
15 मार्च, 1917 को जार निकोलस द्वितीय ने गद्दी त्याग दी। इस प्रकार रुस से निरंकुश राजशाही का अंत हो गया।
रुस मे साम्यवाद की स्थापना 1898 ई. मे हुई थी।
कालांतर मे वैचारिक मतभेद के आधार पर दो भागो बोल्शेविक तथा मेनशेविक मे बंट गया।
बहुमत वाला दल बोल्शेविक कहलाया। इसके नेताओं मे लेनिन सर्वप्रमुख था।
अल्पमत वाला दलमेनशेविक कहलाया। इसका प्रमुख नेता करेंसकी था।
जार के गद्दी त्यागने के बाद सत्ता मेनशेविकों के हाथ मेँ आई। करेंसकी प्रधानमंत्री बना। परंतु सरकार जन समस्याओं को सुलझाने मे असफल रही। इसका विरोध करने पर लेनिन को निर्वासित कर दिया गया।
अंततः बोल्शेविक ने बल प्रयोग द्वारा सत्ता पलटने की तैयारी शुरु कर दी। 7 नवंबर, 1917 को सभी महत्वपूर्ण सरकारी इमारतो पर कब्जा कर लिया गया। करेंसकी देश छोड़कर भाग गया।
बोलशेविकों ने एक नई सरकार का गठन किया, जिसका अध्यक्ष लेनिन बना तथा ट्राटस्की को विदेश मंत्री बनाया गया।
विश्व इतिहास मे पहली बार मजदूर वर्गो के हाथ मे शासन सूत्र आया।