प्लासी का युद्ध - 1757
मीरजाफर को सिराज के बाद अगला बंगाल का नवाब प्रस्तावित कर अंग्रेज प्लासी के युद्ध की तैयारी में जुट गये।
प्लासी के युद्ध की गणना भारत के निर्णायक युद्धों में की जाती है।वर्तमान में प्लासी नदीया जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित है।
प्लासी केयुद्ध मे अंग्रेजी सेना ने ( 1100 यूरोपीय,200सिपाही तथा बंदूकची ) क्लाइव के नेतृत्व में हिस्सा लिया। दूसरी ओर 4500 सैनिकों वाली नवाब की सेना का नेतृत्व तीन राजद्रोही मीरजाफर,यारलतीफ खां और राय दुर्लभ ने किया।
23जून,1757 कोअंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।
युद्ध का परिणाम–
प्लासी के युद्ध के परिणाम में इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने कहा कि 23 जून,1757 को भारत में मध्यकालीन युग का अंत हो गया और आधुनिक युग का शुभारंभ हुआ।एक पीढी से भी कम समय या प्लासी के युद्ध के 20 वर्ष बाद ही देश धर्मतंत्री शासन के अभिशाप से मुक्त हो गया।
डॉ.दीनानाथ वर्मा के शब्दों में प्लासी का युद्ध एक ऐसे विशाल और गहरे षड्यंत्र का प्रदर्शनथा,जिसमें एक ओर कुटिल नीति निपुण बाघ था और दूसरी ओर भोला शिकार,युद्ध मेंअदूरदर्शिता की हार हुई और कूटिलता की जीत। यदि इसका नाम युद्ध है तो प्लासी का प्रदर्शन भी युद्ध था। लेकिन सामान्य भाषा में जिसे युद्ध कहते हैं वह प्लासी में कभी हुआ ही नहीं।
इतिहासकार के.एस.पन्निकर के अनुसार प्लासी सौदा था, जिसमें बंगाल के धनी लोगों और मीरजाफर ने नवाब को अंग्रेजों को बेच दिया।
प्लासी के युद्ध के बाद आर्थिक रूप से भारक के इस सबसे समृद्ध प्रांत को जी भर कर लूटा गया।1757ई. से 1760ई. के बीच मीरजाफर ने अंग्रेजों को तीन करोङ रु. की घूस दी,क्लाइव को युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 37,70,833 पौण्ड प्राप्त हुआ।
अल्फ्रेड लायल के अनुसार प्लासी में क्लाइव की सफलता ने बंगाल में युद्ध तथा राजनीति का एकअत्यंत विस्तृत क्षेत्र अंग्रेजों के लिए खोल दिया।
प्लासी के युद्ध के परिणामों की बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की विजय के साथ पुष्टि हुई।युद्ध ने अंग्रेजों को तात्कालिक सैनिक एवं वाणीज्यिक लाभ प्रदान किया, कंपनी का बंगाल,बिहार और उङीसा पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हुआ।
बक्सर का युद्ध के कारण और परिणाम
बक्सर का युद्ध (1764ई.)-
बक्सर जो बनारस के पूर्व में स्थित है, के मैदान में अवध के नवाब,मुगल सम्राट तथा मीरकासिम की संयुक्त सेना अक्टूंबर, 1764ई. को पहुँची।दूसरी ओर अंग्रेजी सेना हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में पहुँची।
23 अक्टूंबर,1764 ई. को निर्णायक बक्सर का युद्ध प्रारंभ हुआ।युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व ही अंग्रेजों ने अवध के नवाब की सेना से असद खां,साहूमल (रोहतास का सूबेदार) और जैनुल आब्दीन को धन का लालच देकर तोङ लिया।
शीघ्र ही हैक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने बक्सर के युद्ध को जीत लिया।
मीरकासिम का संयुक्त गठबंधन बक्सर के युद्ध में इसलिए पराजित हो गया क्योंकि उसने युद्ध के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की थी,शाहआलम गुप्त रूप से अंग्रेजों से मिला था तथा भारतीय सेना में अनेक प्रकार के दोष अंतर्निहित थे।
बक्सर के युद्ध का ऐतिहासिक दृष्टि से प्लासी के युद्ध से भी अधिक महत्व है क्योंकि इस युद्ध के परिणाम से तत्कालीन प्रमुख भारतीय शक्तियों की संयुक्त सेना के विरुद्ध अंग्रेजी सेना की श्रेष्ठता प्रमाणित होती है।
बक्सर के युद्ध ने बंगाल,बिहार और उङीसा पर कंपनी का पूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर दिया, साथ ही अवध अंग्रेजों का कृपापात्र बन गया।
पी.ई.राबर्ट्स ने बक्सर के युद्ध के बारे में कहा कि- प्लासी की अपेक्षा बक्सर को भारत में अंग्रेजी प्रभुता की जन्मभूमि मानना कहीं अधिक उपयुक्त हो ।
यदि बक्सर के युद्ध के परिणाम को देखा जाये तो कहा जा सकता है कि जहाँ प्लासी की विजय अंग्रेजों की कूटनीति का परिणाम थी, वहीं बक्सर की विजय को इतिहासकारों ने पूर्णतः सैनिक विजय बताया।
प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों की प्रभुता बंगाल में स्थापित की परंतु बक्सर के युद्ध ने कंपनी को एक अखिल भारतीय शक्ति का रूप दे दिया।
बक्सर के युद्ध में पराजित होने के बाद शाहआलम जहाँ पहले ही अंग्रेजों की शरण में आ गया था वहीं अवध के नवाब ने कुछ दिन तक अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिक सहायता हेतु भटकने के बाद मई 1765 ई. में अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
5 फरवरी, 1765 को मीरजाफर की मृत्यु के बाद कंपनी ने उसके पुत्र नज्मुद्दौला को अपने संरक्षण में बंगाल का नवाब बनाया।
मई, 1765 ई. में क्लाइव दूसरी बार बंगाल का गवर्नर बनकर आया, आते ही उसने शाहआलम और शुजाउद्दौला से संधि की।
12 अगस्त, 1765 ई. को क्लाइव ने मुगल बादशाह शाहआलम से इलाहाबाद की प्रथम संधि की। जिसकी शर्तें इस प्रकार थी-
मुगल बादशाह ने बंगाल,बिहार,उङीसा की दीवानी कंपनी को सौंप दी।
कंपनी ने अवध के नवाब से कङा और मानिकपुर छीनकर मुगल बादशाह को दे दिया।
एक फरमान द्वारा बादशाह शाहआलम ने नज्मुद्दौला को बंगाल का नवाब स्वीकार कर लिया।
कंपनी ने मुगल बादशाह को वार्षिक 26 लाख रुपये देना स्वीकार किया। इलाहाबाद की प्रथम संधि का सबसे बङा लाभ कंपनी को बंगाल,बिहार एवं उङीसा के वैधानिक अधिकार के रूप में मिला।
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