पाषाण काल
राबर्ट ब्रूस फुट थे एक - भूगर्भशास्त्री और पुरातत्वेता थे U.P.Lower Sub.(Pre) 2015
- इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, राबर्ट ब्रुश फुट ब्रिटिश भूगर्भ - वैज्ञानिक और पुरातत्वविद् थे।
- जियोलॉजिकल सर्वे से संबद्ध रॉबर्ट ब्रूस फुट ने 1863 ई. में भारत में पाषाणकालीन बस्तियों के अन्वेषण की शुरुआत की।
- उन्हें अक्सर भारत के प्रागैतिहासिक अध्ययन का संस्थापक माना जाता है।
- 24 वर्ष की आयु में फ्रुट भारतीय सर्वेक्षण विभाग में शामिल हो गए।
- 1863 में इन्होंने हाथ की कुल्हाड़ियों की पहली खोज की।
कोपेनहेगन संग्रहालय की सामग्री से पाषाण, कास्यं और लौह युग का त्रियुगीन विभाजन किया था - थॉमसन ने U.P.P.C.S.(Pre) 2010
- डेनमार्क के कोपेनहेगन संग्रहालय की सामग्री के आधार पर पाषाण, कांस्य और लौह युग का त्रियुगीन विभाजन 1820 में पुरातात्विक क्रिश्चियन जर्गेनसन थॉमसन ने किया था।
- एक डेनिश पुरातात्विक था जिसने प्रारंभिक पुरातात्विक तकनीकों और तरीकों का विकास किया था।
उत्खनित प्रमाणों के अनुसार पशुपालन का प्रारंभ हुआ था - मध्य पाषाण काल में U.P.P.C.S.(Mains) 2006
- मध्य पाषाण काल के अंतिम चरण में पशुपालन के साक्ष्य प्राप्त होने लगते है।
- ऐसे पशुपालन के साक्ष्य भारत में आदमगढ़ (होरांगाबाद, म.प्र.) तथा बागोर (भीलवाड़ा, राजस्थान) से मिले है।
किस स्थल से हड्डी के उपकरण प्राप्त हुए हैं - महदहा से U.P.P.C.S.(Mains) 2010
- मध्य पाषाण कालीन महदहा (उ.प्र. के प्रतापगढ़ जिले में स्थित) से बड़ी मात्रा में हड्डी एवं सींग निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- जी.आर. शर्मा महदहा में तीन क्षेत्रों का उल्लेख करते हैं जो झील क्षेत्र, बूचड़खाना संकुल क्षेत्र एवं कब्रिस्तान निवास क्षेत्र में बटा था।
- बूचड़खाना संकुल क्षेत्र से ही हड्डी एवं सींग निर्मित उपकरण और आभूषण बड़े पैमाने पर पाए गए हैं।
- डॉ. जयनारायण पाण्डेय द्वारा लिखित पुस्तक पुरातत्व विमर्श में महदहा, सराय नाहर राय एवं दमदमा तीनों ही स्थलों से हड्डी के उपकरण एवं आभूषण पाए जाने का उल्लेख है।
एक ही कब्र से तीन मानव कंकाल निकले है - दमदमा से U.P.P.C.S.(Pre) 2016
- दमदमा में लगातार पांच वर्षो तक किए गए उत्खनन के फलस्वरुप पश्चिमी तथा मध्यवर्ती क्षेत्रों से कुल मिलाकर 41 मानव शवाधान ज्ञात हुए है।
- इन शवाधानों में से 5 शवाधान युग्म - शवाधान है।
- एक शवाधान में 3 मानव कंकाल एक साथ दफनाएं हुए मिले है।
- शेष शवाधानों में एक - एक कंकाल मिले है।
- जब कि सराय नाहर राय से ऐसी समाधि मिली है जिसमें चार मानव कंकाल एक साथ दफनाएं गए थे।
- यहाँ की कब्रें (समाधियाँ) आवास क्षेत्र के अंदर स्थित थी।
- कब्रें छिछली तथा अंडाकार थीं।
मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयुक्त अनाज था - जौ U.P.P.C.S.(Pre) 1997
- आधुनिक मानव समाज द्वारा मुख्य रुप से 8 खाद्य अनाजों का उपभोग किया गया है----
- (1) जौ - वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो सर्वप्रथम जौ 8000 ई.पू. में निकट पूर्व (भूमध्य सागर एवं ईरान के मध्य स्थित पश्चिमी एशिया के देश) में मानव द्वारा उगाया गया।
- (2) गेंहूँ - बाद में लगभग इन्हीं क्षेत्रों में 8000 ई.पू. के आस-पास ही गेंहूँ मानव द्वारा उगाया जाने लगा।
- (3) चावल - चावल तीसरा खाद्य अनाज है जिसे मानव ने लगभग 7000 ई.पू. के आस-पास चीन के त्यांग्त्जी नदी घाटी क्षेत्र में उगाया।
- (4) मक्का - मक्का मध्य एवं दक्षिण अमेरिकी क्षेत्र में लगभग 6000 ई.पू. में उगाया गया। इसका प्रथम साक्ष्य मेक्सिकों में पाया गया है।
- (5) बाजरा - बाजरा 5500 ई.पू. में चीन में,
- (6) सोरघम सोरघम 5000 ई.पू. में पूर्वी अफ्रीका में,
- (7) राई - राई 5000 ई.पू. में दक्षिण - पूर्व एशिया में,
- (8) जई - जई 2300 ई.पू. में यूरोप में सर्वप्रथम मानव द्वारा उगाया गया।
भारत में मानव का सर्वप्रथम साक्ष्य कहां मिलता है - नर्मदा घाटी P.C.S.(Pre) 2006
- भारत में मानव का सर्वप्रथम साक्ष्य मध्य प्रदेश के पश्चिमी नर्मदा क्षेत्र में मिला है।
- इसकी खोज 1982 में की गई थी।
खाद्यान्नों की कृषि सर्वप्रथम प्रारंभ हुई थी - नवपाषाण काल में U.P.P.C.S.(Mains) 2005
- खाद्यान्नों का उत्पादन सर्वप्रथम नवपाषाण काल में हुआ।
- यही वह समय है जब मनुष्य कृषि कर्म से परिचित हुआ।
- नवपाषाण काल में ही जौ एवं गेहूँ की वन्य किस्म को खेती के योग्य बनाया गया जिसमें कृषि जन्य गेहूँ का उदभव हुआ।
- भारतीय उपमहाद्वीप में कोलडिहवा तथा मेहरगढ़ दो नवपाषाणिक ग्राम बस्तियां थी जहां से चावल एवं गेहूँ के स्पष्ट प्रमाण मिले है।
किसको चालकोलिथिक युग भी कहा जाता है - ताम्रपाषाण युग B.P.S.C.(Pre) 2000
- ताम्रपाषाण युग को चालकोलिथिक युग भी कहा जाता है।
- जिन संस्कृतियों में तांबे के औजारों के साथ - साथ पत्थर के बने हुए उपकरणों का प्रचलन मिलता है, उन्हें प्रायः ताम्रपाषाणिक संस्कृतियां कहा जाता है।
किस एक पुरास्थल से पाषाण संस्कृति से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए है - मेहरगढ़ U.P.P.C.S.(Pre) 2008
- बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में स्थित पुरास्थल मेहरगढ़ से पाषाण संस्कृति से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए है।
भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं - लहुरादेव से U.P.Lower Sub.(Pre) 2004/U.P.Lower Sub.(Pre) 2008
- नवीनत्तम खोजों के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनत्तम कृषि साक्ष्य वाला स्थल उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिलें में स्थित लहुरादेव है।
- यहां से 8000 ई.पू. से 9000 ई.पू. मध्य के चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
- इस नवीनतम खोज के पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप का प्राचीनतम कृषि साक्ष्य वाला स्थल मेहरगढ़ (पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित ः यहां से 7000 ई.पू. के गेहूँ के साक्ष्य मिले हैं) जबकि प्राचीनत्तम चावल के साक्ष्य वाला स्थल कोलडिहवा (इलाहाबाद जिले में बेलन नदी तट पर स्थित, यहां से 6500 ई.पू. के चावल की भूसी के साक्ष्य मिले है) माना जाता था।
उस स्थल का नाम बताइए जहां से प्राचीनतम स्थायी जीवन के प्रमाण मिले है - मेहरगढ़ U.P.P.C.S.(Spl)(Mains) 2008
- प्राचीनतम स्थायी जीवन के प्रमाण सर्वप्रथम बलूचिस्तान के कच्छी मैदान स्थित मेहरगढ़ से मिले है।
- जिसकी प्रामाणिक तिथि सातवीं सहस्त्राब्दि ईसा पूर्व (7000 ई.पू.) है।
नवदाटोली का उत्खनन किसने किया था - एच.डी. सांकलिया ने U.P.Lower Sub.(Spl)(Pre) 2009
- नवदाटोली, मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण ताम्रपाषाणिक पुरास्थल है जो इंदौर के निकट स्थित है।
- यहां से मिट्टी, बांस तथा फूस के बने चौकार एवं वृत्ताकार घर मिले हैं।
- यहां के घरों के फर्श तथा दीवारों पर चूने का लेप लगाया जाता था।
- यहां के मूल मृदभांड लाल - काले रंग के है जिन पर ज्यामितीय आरेख उत्कीर्ण है।
- यहां की मुख्य फसलों में गेहूँ, अलसी, मसूर, काला चना, हरा चना, हरी मटर, खेसरी तथा चावल है।
- नवदाटोली का उत्खनन दक्कन कालेज पूना के प्रोफेसर एच.डी.सांकलिया ने कराया था।
- ये स्थल इस महाद्वीप का सबसे विस्तृत उत्खनित ताम्रपाषाणिक ग्राम स्थल है जिसकी तिथि ई.पू. 1600 से 1300 के बीच निर्धारित की गई है।
वृहत्पाषाण स्मारकों की पहचान की गई है - मृतक को दफनाने के स्थान के रुप में U.P.P.C.S.(Mains) 2005
- नवपाषाणयुगीन दक्षिण भारत में शवों को विभिन्न प्रकार की समाधियों में दफनाने की परंपरा रही है।
- इन समाधियों को जो विशाल पाषाण खंडों से निर्मित है, वृहत्पाषाण या मेगालिथ के नाम से जाना जाता है।
- इनके विभिन्न प्रकार हैं, जैसे - सिस्ट - समाधि, पिट सर्किल, कैर्न - सर्किल, डोल्मेन, अंब्रेला - स्टोन, हुड - स्टोन, कंदराएं, मेहिर।
- ये वृहत्पाषाण स्मारक मृतकों की समाधियां थी।
राख का टीला किस नवपाषाणिक स्थल से संबंधित है - संगनकल्लू U.P.P.C.S.(Mains) 2009
- कर्नाटक में मैसूर के पास वेल्लारी जनपद में स्थित संगनकल्लू नामक नवपाषाण कालीन पुरास्थल से राख के टीले प्राप्त हुए है।
- पिकलीहल में भी राख के टीले मिले हैं।
- ये राख के टीले नवपाषाण युगीन पशुपालक समुदायों के मौसमी शिविरों के जले हुए अवशेष हैं।
भारत में किस शिलाश्रय से सर्वाधिक चित्र प्राप्त हुए हैं - भीमबेटका U.P.P.C.S.(Pre) 2008
- म.प्र. के पाषाणकालीन स्थल भीमबेटका से चित्रकारी से युक्त 500 शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
- यूनेस्कों ने भीमबेटका शैल चित्रों को विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया हैं।
गैरिक मृदभांड पात्र (ओ.सी.पी.) का नामकरण हुआ था - हस्तिनापुर में U.P.P.C.S.(Mains)2006
- गंगा - यमुना दोआब की सांस्कृतिक परंपरा संभवतः उस संस्कृति के साथ शुरु होती है जिसे अपने अत्यंत विशिष्ट मृदभांड के नमूने के कारण गेरुवर्णी गैरिक मृदभांड संस्कृति (ओ.सी.पी.) कहा गया है।
- इसके साक्ष्य हस्तिनापुर एवं अतरंजीखेड़ा से प्राप्त होते है।
राष्ट्रीय मानव संग्रहालय कहां पर है - भोपाल M.P.P.C.S.(Pre) 1997
- राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, जिसका नाम बदलकर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय कर दिया गया है, भोपाल (म.प्र.) में स्थित है।
- यह भारत सरकार के संस्कृति विभाग के अंतर्गत स्वायत्तशासी संगठन है।
ताम्राश्म काल में महाराष्ट्र के लोग मृतकों को घर के फर्श के नीचे किस तरह रखकर दफनातें थे - उत्तर से दक्षिण की ओर U.P.P.C.S.(Pre)1997
- महाराष्ट्र की ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति के नेवासा, दायमाबाद, कौठे, चंदोली, इनामगांव आदि पुरास्थलों में घरों से मृतकों को अस्थिकलश में रखकर उत्तर से दक्षिण स्थिति में घरों के फर्ष के नीचे दफनाएं जाने के साक्ष्य मिले हैं।
- कब्र में मिट्टी की हंडियां और तांबे की कुछ वस्तुएँ भी रखी जाती थी।
किस स्थल से मानव कंकाल के साथ कुत्ते का कंकाल भी शवाधान से प्राप्त हुआ है - बुर्जहोम U.P. Lower Sub.(Pre) 2008
- जम्मू एवं कश्मीर में श्रीनगर के निकट उत्तर - पश्चिम में स्थित बुर्जहोम से नव पाषाणिक अवस्था में मानव कंकाल के साथ कुत्ते का कंकाल भी शवाधान से प्राप्त हुआ है।
- गर्तावास (गड्ढों वाले घर) भी यहां की प्रमुख विशेषता है। इस पुरास्थल की खोज 1935 में डी टेरा एवं पीटरसन ने की थी।
विंध्य क्षेत्र के किस शिलाश्रय से सर्वाधिक मानव कंकाल मिले हैं - लेखहिया U.P.P.C.S.(Pre) 2016
- विंध्य क्षेत्र के लेखहिया के शिलाश्रय संख्या 1 से मध्य पाषाणिक लघु पाषाण उपकरणों के अतिरिक्त सत्रह मानव कंकाल प्राप्त हुए हैं जिनमें से कुछ सुरक्षित हालत में है तथा अधिकांश क्षत - विक्षत हैं।
- अमेरिका के ओरेगॉन विश्वविद्यालय के जॉन आर. लुकास के अनुसार, लेखहिया में कुल 27 मानव कंकालों की अस्थियां मिली है।
Show less