अन्य जन आंदोलन
1857 के विद्रोह के ठीक बाद बंगाल में कौन - सा विप्लप हुआ - नील उपद्रव
- 1857 के विद्रोह के ठीक बाद बंगाल में नील विद्रोह (1859 - 60) हुआ।
- नील विद्रोह की शुरुआत बंगाल के नदिया जिले के गोविंदपुर गांव से हुई।
- एक नील उत्पादक के दो भूतपूर्व कर्मचारियों - दिंगबर विश्वास तथा विष्णु विश्वास के नेतृत्व में वहां के किसान एकजुट हुए तथा उन्होंने नील की खेती बंद कर दी।
- यह नील आंदोलन के इतिहास में अपनी मांगों को लेकर किए गए आंदोलनों में सर्वाधिक व्यापक और जुझारु विद्रोह था।
- बंगाल का नील विद्रोह शोषण के विरुद्ध किसानों की सीधी लड़ाई थी।
- बंगाल का नील विद्रोह शोषण के विरुद्ध किसानों की सीधी लड़ाई थी।
- बंगाल के वे काश्तकार जो अपने खेतों में चावल की खेती करना चाहते थे, उन्हें यूरोपीय नील बागान मालिक नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे।
- नील की खेती से इंकार करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमन - चक्र का सामना करना पड़ता था।
- सिंतबर, 1859 में उत्पीड़ित किसानों ने अपने खेतों में नील न उगाने का निर्णय लेकर बागान मालिकों के विरुद्ध कर दिया।
- 1860 तक नील आंदोलन नदिया, पावना, खुलना, ढाका, मालदा, दीनाजपुर आदि क्षेत्रों में फैल गया।
- किसानों की एकजुटता के कारण बंगाल में 1860 तक सभी नील कारखाने बंद हो गए।
- बंगाल के बुद्धिजीवी वर्ग ने अखबारों में अपने लेखों द्वारा तथा जन सभाओं के माध्यम से इस विद्रोह के प्रति अपने समर्थन को व्यक्त किया।
- इसमें हिंदू पैट्रियाट के संपादक हरिश्चंद्र मुखर्जी की विशेष भूमिका रही।
- नील बागान मालिकों के अत्याचारों का खुला चित्रण दीनबंधु मित्र ने अपने नाटक नील दर्पण में किया है।
सन्यासी विद्रोह | 1763 - 1800 ई. | मंजर शाह | बंगाल व बिहार |
वन्दे मातरम गीत किसने लिखा है - बंकिमचंद्र चटर्जी
- वन्दे मातरम गीत बंकिमचंद्र चटर्जी की प्रसिद्ध कृति आनंदमठ से लिया गया है।
- इस उपन्यास का कथानक सन्यासी विद्रोह पर आधारित है।
- 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में इसे पहली बार गाया गया था।
उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान होने वाले वहाबी आंदोलन का मुख्य केंद्र था - पटना
- वहाबी विद्रोह 1828 ई. से प्रारंभ होकर 1888 ई. चलता रहा था।
- इतने लम्बे समय तक चलने वाले वहाबी विद्रोह के प्रवर्तक रायबरेली के सैय्यद अहमद थे।
- इस आन्दोलन का मुख्य केंद्र पटना शहर था।
- पटना के विलायत अली और इनायत अली इस आंदोलन के प्रमुख नायक थे।
- यह आंदोलन मूल रुप से मुस्लिम सुधारवादी आंदोलन था, जो उत्तर पश्चिम, पूर्वी भारत तथा मध्य भारत में सक्रिय था।
कूका आंदोलन को किसने संगठित किया - गुरु राम सिंह
- कूका आंदोलन वहाबी आंदोलन से बहुत कुछ मिलता जुलता था।
- दोनों धार्मिक आंदोलन के रुप में आरंभ हुए किंतु बाद में ये राजनीतिक आंदोलन के रुप में परिवर्तित हो गए, जिसका सामान्य उद्देश्य अंग्रेजों को देश से बाहर निकालना था।
- पश्चिमी पंजाब में कूका आंदोलन की शुरुआत 1840 में भगत जवाहरमल द्वारा की गई, जिन्हें मुख्यतः सियान साहब के नाम से पुकारा जाता था।
- इनका उद्देश्य सिक्ख धर्म में प्रचलित बुराइयों और अंधविश्वासों को दूर कर इस धर्म को शुद्ध करना था।
- 1872 में इस आंदोलन के नेता राम सिंह को रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहां इनकी 1885 में मृत्यु हो गई।
चुआर विद्रोह | 1776 - 1816 ई. | जगन्नाथ | पं बंगाल |
पाइका विद्रोह | 1817 - 1825 ई. | बक्शी जगबंधु | उड़ीसा |
भील विद्रोह | 1818 - 1857 ई. | सेवरम त्रयम्बक | महाराष्ट्र |
संथाल विद्रोह | 1855 - 1856 ई. | सिद्ध & कान्हू | राजमहल पहाड़ी बिहार |
मुंडा विद्रोह | 1899 - 1900 ई. | बिरसा मुंडा | बिहार |
कूका विद्रोह | 1840 - 1872 ई. | भगत जवाहर मल | पंजाब |
कोल विद्रोह | 1831 - 1832 ई. | बुद्धो भगत व गंगा नारायण | छोटा नागपुर |
पागलपंथी विद्रोह वस्तुतः एक विद्रोह था - गारों का
- पागलपंथ एक अर्द्ध - धार्मिक संप्रदाय था, जिसे उत्तरी बंगाल के करमशाह ने चलाया था।
- करमशाह के पुत्र तथा उत्तराधिकारी टीपू धार्मिक तथा राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित थे।
- उसने जमींदारों के द्वारा मुजारों पर किए गए अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन किया।
- 1825 में टीपू ने शेरपुर पर अधिकार कर लिया तथा राजा बन बैठा।
- वह इतना शक्तिशाली हो गया कि स्वतंत्र सत्ता का प्रयोग करने लगा और प्रशासन को चलाने के लिए उसने एक न्यायधीश, एक मजिस्ट्रेट और एक कलेक्टर नियुक्त किया।
कौन फराजी विद्रोह का नेता था - दादू मियां
- फराजी लोग बंगाल के फरीदपुर के हाजी शरीयतुल्ला द्वारा चलाए गए संप्रदाय के अनुयायी थे।
- ये लोग अनेक धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक आमूल परिवर्तनों का प्रतिपादन करते थे।
- शरीयतुल्ला के पुत्र दादू मियां ने बंगाल से अंग्रेजों को निकालने की योजना बनाई।
- यह विद्रोह 1838 - 1860 के दौरान चलता रहा, अंत में इस संप्रदाय के अनुयायी वहाबी दल में सम्मिलित हो गए।
वेलु थम्पी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व किया था - केरल में
- 1805 में वेलेजली ने ट्रावनकोर (केरल) के महाराजा को सहायक संधि करने पर विवश किया।
- महाराजा संधि की शर्तो से अप्रसन्न था और इसलिए उसने सहायक संधि संबंधी कर देने में आनाकानी की तथा यह धन बकाया होता चला गया।
- अंग्रेज रेजीडेंट का व्यवहार भी बहुत धृष्टतापूर्ण था, जिसके फलस्वरुप दीवान वेलु थम्पी ने विद्रोह कर दिया, जिसमें नायर बटालियन ने उसका समर्थन किया।
- अंग्रेजों को एक बहुत बड़ी सेना इस विद्रोह का दमन करने के लिए भेजनी पड़ी थी।
कोल विद्रोह (1831 - 32) का नेतृत्व किसने किया - बुद्धू भगत
- छोटा नागपुर क्षेत्र में कोल विद्रोह का नेतृत्व 1831 - 32 में बुद्धू या बुद्धों भगत एवं गंगा नारायण ने किया था।
- यह विद्रोह रुक - रुक कर 1848 तक चलता रहा और आखिरी में इसे सरकार द्वारा कुचल दिया गया।
कौन - सा स्थान गढ़करी विद्रोह का केंद्र था - कोल्हापुर
- गढ़करी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके वंशानुगत कर्मचारी थे।
- उन्होंने मनमाने ढ़ग से भू-राजस्व की वसूली, मराठा सेना से उन्हें सेवा मुक्त किए जाने और उनकी जमींनों को मामलतदारों की देख - रेख के अधीन कर दिए जाने के विरुद्ध 1844 में कोल्हापुर में विद्रोह कर दिया।
- इस विद्रोह को दबाने के लिए सरकार को काफी संघर्ष करना पड़ा।
नील दर्पण नाटक का लेखक कौन था - दीनबंधु मित्र
मानव बलि प्रथा का निषेध करने के कारण अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाली जनजाति का नाम - खोंद
- खोंद जनजाति के लोग तमिलनाडु से लेकर बंगाल और मध्य भारत तक फैले विस्तृत पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण वे वस्तुतः स्वतंत्र थे।
- इन्होंने 1837 से 1856 तक अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया।
- इस आंदोलन का नेतृत्व युवा राजा के नाम पर चक्र बिसोई ने किया।
- इस विद्रोह के मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा मानव बलि (मरिहा) को प्रतिबंधित करने के प्रयास, अंग्रेजों द्वारा नए करों का आरोपण और अनेक क्षेत्रों में जमींदारों तथा साहूकारों के प्रवेश से संबंधित थे, जिनके कारण आदिवासियों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा।
- अंग्रेजों ने एक मरिहा एजेंसी गठित की जिसके विरुद्ध खोंदों ने विद्रोह किया परंतु 1855 में चक्र बिसोई लुप्त हो गया, जिसके बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया।
वघेरा विद्रोह कहां हुआ - बड़ौदा
- बघेरा विद्रोह 1818 ई. में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध किया गया।
- बघेरा विद्रोह बड़ौदा में हुआ।
- बड़ौदा के गायकवाड़ों ने अंग्रेजी सेना की सहायता से बघेरों से अधिक कर एकत्र करने का प्रयत्न किया जिसके परिणामस्वरुप बघेरा सरदारों ने विद्रोह कर दिया।
- 1818 - 1819 ई. के मध्य अंग्रेजी प्रदेश पर भी आक्रमण किया।
- यह विद्रोह 1820 ई. के आस - पास समाप्त हो गया।
1855 ई. में संथालों ने किस अंग्रेज कंमाडर को हराया - मेजर बारो
- 1855 ई. में संथालों ने भागलपुर क्षेत्र के भगनीडीह ताल्लुके में विद्रोह कर दिया था।
- इन्होंने एक साथ पुलिस और दिकुओं पर आक्रमण किए थे जिसका नेतृत्व सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव नामक ने किया था।
- संथाल विद्रोह को दबाने के लिए मेजर बारो के नेतृत्व में एक सेना भेजी गई जिसे संथालों ने हरा दिया था।
- अंततः भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन और मेजर जनरल लायड ने क्रूरतापूर्वक संथाल विद्रोह का दमन किया था।
भील विद्रोह घटना कहाँ घटित हुई - महाराष्ट्र
- भीलों की आदिम जाति पश्चिमी तट के खानदेश में रहती थी।
- 1812 - 19 तक इन लोगों ने अपने नए स्वामी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
- कंपनी के अधिकारियों का कथन था कि इस विद्रोह को पेशवा बाजीराव द्वितीय तथा उसके प्रतिनिधि त्रयम्बकजी दांगलिया ने प्रोत्साहित किया था।
- वास्तव में कृषि संबंधी कष्ट तथा नई सरकार का भय ही इस विद्रोह का कारण था।
- 1825 में सेवरम के नेतृत्व में इन लोगों ने पुनः विद्रोह कर दिया।
- ब्रिटिश सेना काफी प्रयास के बाद इस विद्रोह को कुचल सकी।
जिस आदिवासी नेता को जगत पिता (धरती आबा) कहा जाता था, वह था - बिरसा मुंडा
- बिरसा मुंडा को जगत पिता या धरती आबा कहा जाता था।
- मुंडा आदिवासियों का विद्रोह 1899 - 1900 के बीच हुआ।
- इसका नेतृत्व किया बिरसा मुंडा ने।
- बिरसा का जन्म बंटाई की खेती करने वाले एक परिवार में 1874 में हुआ था।
- 1895 में बिरसा ने अपने आप को भगवान का दूत घोषित कर दिया।
- उसने कहा भगवान ने उसे गजब की ताकत दी है।
- बिरसा नेता बन गया और धार्मिक आंदोलन जल्द ही राजनीतिक आंदोलन में बदल गया।
- फरवरी, 1900 के शुरु में बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और जून में वह जेल में मर गया।
जनजातिय लोगों के संबंध में आदिवासी शब्द का प्रयोग किया था - ठक्कर बापा ने
- ठक्कर बापा ने जनजातिय लोगों के संबंध में आदिवासी शब्द का प्रयोग किया था।
- ये हरिजन सेवक संघ के महासचिव थे।
- 1933 - 34 के दौरान इन्होंने गांधी जी के साथ हरिजनों की दशा देखने - जानने के लिए भारत का भ्रमण किया।
- ये सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटी के निष्ठावान सदस्य भी थे।
हौज विद्रोह हुआ - 1820 - 21 के दौरान
- हौज विद्रोह 1820 - 21 में हुआ था जिसका केन्द्र बिहार का संथाल परगना था।
खैरवार आदिवासी आंदोलन कब हुआ - 1874
- खैरवार आदिवासी आंदोलन भागीरथ मांझी के नेतृत्व में 1874 में हुआ था।
संभलपुर के अनेक ब्रिटिश - विरोधी विद्रोहों का नेता कौन था - सुरेंद्र साई
- संभलपुर की गद्दी के दावेदार सुरेंद्र साई ने यहां ब्रिटिश विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।
- 1862 में उसने आत्म समर्पण कर दिया था।
1921 का मोपला विद्रोह कहां हुआ था - केरल
- मोपला विद्रोह केरल के मालाबार क्षेत्र में 1921 में हुआ था।
- यहां पर काश्तकार अधिकतर बटाईदार मुसलमान थे तथा जमींदार अधिकतर हिंदू थे।
- आंदोलन जमींदारों के शोषण के खिलाफ था।
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