शब्द-विचार
दो या दो से अधिक वर्णो से बने ऐसे समूह को 'शब्द' कहते है, जिसका कोई न कोई अर्थ अवश्य हो।
दूसरे शब्दों में- ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्णसमुदाय को 'शब्द' कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- वर्णों या ध्वनियों के सार्थक मेल को 'शब्द' कहते है।
जैसे- सन्तरा, कबूतर, टेलीफोन, आ, गाय, घर, हिमालय, कमल, रोटी, आदि।
इन शब्दों की रचना दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से हुई है। वर्णों के ये मेल सार्थक है, जिनसे किसी अर्थ का बोध होता है। 'घर' में दो वर्णों का मेल है, जिसका अर्थ है मकान, जिसमें लोग रहते हैं। हर हालत में शब्द सार्थक होना चाहिए। व्याकरण में निरर्थक शब्दों के लिए स्थान नहीं है।
शब्द और पद- यहाँ शब्द और पद का अंतर समझ लेना चाहिए। ध्वनियों के मेल से शब्द बनता है। जैसे- प+आ+न+ई- पानी। यही शब्द जब वाक्य में अर्थवाचक बनकर आये, तो वह पद कहलाता है।
जैसे- पुस्तक लाओ। इस वाक्य में दो पद है- एक नामपद 'पुस्तक' है और दूसरा क्रियापद 'लाओ' है।
शब्दों की रचना (i) ध्वनि और (ii) अर्थ के मेल से होती है। एक या अधिक वर्णों से बनी स्वतन्त्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते है;
जैसे- मैं, धीरे, परन्तु, लड़की इत्यादि। अतः शब्द मूलतः ध्वन्यात्मक होंगे या वर्णात्मक। किन्तु, व्याकरण में ध्वन्यात्मक शब्दों की अपेक्षा वर्णात्मक शब्दों का अधिक महत्त्व है। वर्णात्मक शब्दों में भी उन्हीं शब्दों का महत्त्व है।
शब्द के भेद -
अर्थ, प्रयोग, उत्पत्ति, और व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द के कई भेद है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है-
(1) अर्थ की दृष्टि से शब्द-भेद
(i)साथर्क शब्द (ii) निरर्थक शब्द
(i)सार्थक शब्द:-जिस वर्ण समूह का स्पष्ट रूप से कोई अर्थ निकले, उसे 'सार्थक शब्द' कहते है।
जैसे-कमल, खटमल, रोटी, सेव आदि।
(ii)निरर्थक :-जिस वर्ण समूह का कोई अर्थ न निकले, उसे निरर्थक शब्द कहते है।
जैसे- राटी, विठा, चीं, वाना, वोती आदि।
सार्थक शब्दों के अर्थ होते है और निरर्थक शब्दों के अर्थ नहीं होते। जैसे- 'पानी' सार्थक शब्द है और 'नीपा' निरर्थक शब्द, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं।
(2) प्रयोग की दृष्टि से शब्द-भेद
(i)विकारी शब्द (ii)अविकारी शब्द
(i)विकारी शब्द :- जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तन का विकार आता है, उन्हें विकारी शब्द कहते है।
जैसे- लिंग- लड़का पढता है।....... लड़की पढ़ती है।
वचन- लड़का पढता है।........लड़के पढ़ते है।
कारक- लड़का पढता है।........ लड़के को पढ़ने दो।
विकारी शब्द चार प्रकार के होते है -
(i) संज्ञा (noun) (ii) सर्वनाम (pronoun) (iii) विशेषण (adjective) (iv) क्रिया (verb)
(ii)अविकारी शब्द :-जिन शब्दों रूप में कोई परिवर्तन नही होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते है। जैसे- परन्तु, तथा, यदि, धीरे-धीरे, अधिक आदि।
अविकारी शब्द भी चार प्रकार के होते है - (i )क्रिया-विशेषण (Adverb) (ii )सम्बन्ध बोधक (Preposition) (iii )समुच्चय बोधक(Conjunction) (iv )विस्मयादि बोधक(Interjection)
(3) उत्पति की दृष्टि से शब्द-भेद
(i)तत्सम (ii )तदभव (iii )देशज एवं (iv)विदेशी शब्द।
(i) तत्सम :-हिंदी में संस्कृत के मूल शब्दों को 'तत्सम' कहते है।
दूसरे शब्दों में- संस्कृत भाषा के वे शब्द जो हिन्दी में अपने वास्तविक रूप में प्रयुक्त होते है, उन्हें तत्सम शब्द कहते है।
ये शब्द आज भी ज्यों-के-त्यों व्यवहार में आते हैं।
जैसे- कवि, माता, विद्या, नदी, फल, पुष्प, पुस्तक, पृथ्वी आदि।
यहाँ संस्कृत के उन तत्स्मो की सूची है, जो संस्कृत से होते हुए हिंदी में आये है-
तत्सम हिंदी तत्सम हिंदी
आम्र आम गोमल ,गोमय गोबर
उष्ट्र ऊॅंट घोटक घोड़ा
चंचु चोंच पर्यक पलंग
त्वरित तुरंत भक्त्त भात
शलाका सलाई हरिद्रा हल्दी, हरदी
चतुष्पदिका चौकी सपत्री सौत
उद्वर्तन उबटन सूचि सुई
खर्पर खपरा, खप्पर सक्तु सत्तू
तिक्त तीता क्षीर खीर
(ii) तदभव :- ऐसे शब्द, जो संस्कृत और प्राकृत से विकृत होकर हिंदी में आये है, 'तदभव' कहलाते है।
दूसरे शब्दों में- संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द, जो बिगड़कर अपने रूप को बदलकर हिन्दी में मिल गये है, 'तदभव' शब्द कहलाते है।
जैसे- अग्नि(तत्सम) का आग (तद्धव), कुब्ज (तत्सम) का कुबड़ा (तद्धव), कर्पूर (तत्सम) का कपूर (तद्धव),दुग्ध (तत्सम) का दूध, हस्त (तत्सम) का हाथ (तद्धव) आदि।
तत्+भव का अर्थ है- उससे (संस्कृत से) उत्पत्र। ये शब्द संस्कृत से सीधे न आकर पालि, प्राकृत और अप्रभ्रंश से होते हुए हिंदी में आये है। इसके लिए इन्हें एक लम्बी यात्रा तय करनी पड़ी है। सभी तदभव शब्द संस्कृत से आये है, परन्तु कुछ शब्द देश-काल के प्रभाव से ऐसे विकृत हो गये हैं कि उनके मूलरूप का पता नहीं चलता।
तदभव के प्रकार-
तदभव शब्द दो प्रकार के है-(i)संस्कृत से आनेवाले और (2)सीधे प्राकृत से आनेवाले।
हिंदी भाषा में प्रयुक्त होनेवाले बहुसंख्य शब्द ऐसे तदभव है, जो संस्कृत-प्राकृत से होते हुए हिंदी में आये है।
निम्नलिखित उदाहरणों से तदभव शब्दों के रूप स्पस्ट हो जायेंगे -
संस्कृत प्राकृत तदभव हिंदी
अग्नि अग्गि आग
मया मई मैं
वत्स वच्छ बच्चा, बाछा
चत्वारि चतारी चार
पुष्प पुप्फ फूल
मयूर मऊर मोर
चतुर्थ चडत्थ चौथा
प्रिय प्रिय पिय, पिया
वचन वअण बैन
कृतः कओ किया
मध्य मज्झ में
नव नअ नौ
(iii) देशज :-देश की बोलचाल में पाये जानेवाले शब्द 'देशज' कहलाते हैं।
दूसरे शब्दों में- जो शब्द देश की विभिन्न भाषाओं से हिन्दी में अपना लिये गये है, उन्हें देशज शब्द कहते है।
जैसे- चिड़िया, कटरा, कटोरा, खिरकी, जूता, खिचड़ी, पगड़ी, लोटा, डिबिया, तेंदुआ, कटरा, अण्टा, ठेठ, ठुमरी, खखरा, चसक, फुनगी, डोंगा आदि।
देशज वे शब्द है, जिनकी व्युत्पति का पता नही चलता। ये अपने ही देश में बोलचाल से बने है,इसलिए इन्हे देशज कहते है।
हेमचन्द्र ने उन शब्दों को 'देशी' कहा है, जिनकी व्युत्पत्ति किसी संस्कृत धातु या व्याकरण के नियमों से नहीं हुई। विदेशी विद्वान जॉन बीम्स ने देशज शब्दों को मुख्यरूप से अनार्यस्त्रोत से सम्बद्ध माना हैं।
(iv) विदेशी :-विदेशी भाषाओं से हिंदी भाषा में आये शब्दों को 'विदेशी' शब्द 'कहते है।
अथवा- जो शब्द विदेशी भाषाओं से हिन्दी में आ गये है, उन्हें विदेशी शब्द कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिन शब्दों का जन्म विदेशों में हुआ है, उन्हें 'विदेशज' कहते हैं।
अँगरेजी- हॉस्पिटल, डॉक्टर, बुक, रेडियो, टिकट, टेबुल इत्यादि।
फारसी- आराम, अफसोस, किनारा, गिरफ्तार, नमक, दुकान, अनार, चश्मा, गिरह इत्यादि।
अरबी- असर, किस्मत, खयाल, दुकान, औरत, मालिक, गरीब, मदद इत्यादि।
तुर्की से- तोप, दरोगा, चाकू।
चीनी से- चाय, पटाखा,आदि।
इनमें फारसी, अरबी, तुर्की, अँगरेजी, पुर्तगाली और फ्रांसीसी भाषाएँ मुख्य है। अरबी, फारसी और तुर्की के शब्दों को हिन्दी ने अपने उच्चारण के अनुरूप या अपभ्रंश रूप में ढाल लिया है। हिन्दी में उनके कुछ हेर-फेर इस प्रकार हुए हैं-
(1) क, ख, ग, फ जैसे नुक्तेदार उच्चारण और लिखावट को हिन्दी में साधारणतया बेनुक्तेदार उच्चरित किया और लिखा जाता है।
जैसे- कीमत (अरबी)- कीमत (हिन्दी), खूब (फारसी)=खूब (हिन्दी), आगा (तुर्की)=आगा (हिन्दी), फैसला (अरबी)=फैसला (हिन्दी)।
(2) शब्दों के अन्तिम विसर्ग की जगह हिन्दी में आकार की मात्रा लगाकर लिखा या बोला जाता है।
जैसे- आईन: और कमीन: (फारसी)=आईना और कमीना (हिन्दी), हैज: (अरबी)=हैजा (हिन्दी), चम्च: (तुर्की)=चमचा (हिन्दी)।
(3) शब्दों के अन्तिम हकार की जगह हिन्दी में आकार की मात्रा कर दी जाती है।
जैसे- अल्लाह (अरब)=अल्ला (हिन्दी)।
(4) शब्दों के अन्तिम आकार की मात्रा को हिन्दी में हकार कर दिया जाता है।
जैसे- परवा (फारसी)=परवाह (हिन्दी)।
(5) शब्दों के अन्तिम अनुनासिक आकार को 'आन' कर दिया जाता है।
जैसे- दुकाँ (फारसी)=दुकान (हिन्दी), ईमाँ (अरबी) =ईमान (हिन्दी)।
(6) बीच के 'इ' को 'य' कर दिया जाता है।
जैसे- काइद: (अरबी)=कायदा (हिन्दी)।
(7) बीच के आधे अक्षर को लुप्त कर दिया जाता है।
जैसे- नश्श: (अरबी)=नशा (हिन्दी)।
(8) बीच के आधे अक्षर को पूरा कर दिया जाता है।
जैसे- अफ्सोस, गर्म, किश्मिश, बेर्हम, (फारसी)=अफसोस, गरम, जहर, किशमिश, बेरहम (हिन्दी)। तर्फ, कस्त्रत (अरबी)= तरफ, नहर, कसरत (हिन्दी) । चमच:, तग्गा (तुर्की)=चमचा, तमगा (हिन्दी)।
(9) बीच की मात्रा लुप्त कर दी जाती है।
जैसे- आबोदन: (फारसी)=आबदाना (हिन्दी), जवाहिर, मौसिम, वापिस (अरबी)=जवाहर, मौसम, वापस (हिन्दी), चुगुल (तुर्की)=चुगल (हिन्दी)।
(10) बीच में कोई ह्स्व मात्रा (खासकर 'इ' की मात्रा) दे दी जाती है।
जैसे- आतशबाजी (फारसी)=आतिशबाजी (हिन्दी)। दुन्या, तक्य: (अरबी)=दुनिया, तकिया (हिन्दी)।
(11) बीच की ह्स्व मात्रा को दीर्घ में, दीर्घ मात्रा को ह्स्व में या गुण में, गुण मात्रा को ह्स्व में और ह्स्व मात्रा को गुण में बदल देने की परम्परा है।
जैसे- खुराक (फारसी)=खूराक (हिन्दी) (ह्स्व के स्थान में दीर्घ), आईन: (फारसी)=आइना (हिन्दी) (दीर्घ के स्थान में ह्स्व): उम्मीद (फारसी)=उम्मेद (हिन्दी) (दीर्घ 'ई' के स्थान में गुण 'ए'); देहात (फारसी)=दिहात (हिन्दी) (गुण 'ए' के स्थान में 'इ'); मुगल (तुर्की)=मोगल (हिन्दी) ('उ' के स्थान में गुण 'ओ')।
(12) अक्षर में सवर्गी परिवर्तन भी कर दिया जाता है।
जैसे- बालाई (फारसी)=मलाई (हिन्दी) ('ब' के स्थान में उसी वर्ग का वर्ण 'म')।
हिन्दी के उच्चारण और लेखन के अनुसार हिन्दी-भाषा में घुले-मिले कुछ विदेशज शब्द आगे दिये जाते है।
(अ) फारसी शब्द
अफसोस, आबदार, आबरू, आतिशबाजी, अदा, आराम, आमदनी, आवारा, आफत, आवाज, आइना, उम्मीद, कबूतर, कमीना, कुश्ती, कुश्ता, किशमिश, कमरबन्द, किनारा, कूचा, खाल, खुद, खामोश, खरगोश, खुश, खुराक, खूब, गर्द, गज, गुम, गल्ला, गवाह, गिरफ्तार, गरम, गिरह, गुलूबन्द, गुलाब, गुल, गोश्त, चाबुक, चादर, चिराग, चश्मा, चरखा, चूँकि, चेहरा, चाशनी, जंग, जहर, जीन, जोर, जबर, जिन्दगी, जादू, जागीर, जान, जुरमाना, जिगर, जोश, तरकश, तमाशा, तेज, तीर, ताक, तबाह, तनख्वाह, ताजा, दीवार, देहात, दस्तूर, दुकान, दरबार, दंगल, दिलेर, दिल, दवा, नामर्द, नाव, नापसन्द, पलंग, पैदावार, पलक, पुल, पारा, पेशा, पैमाना, बेवा, बहरा, बेहूदा, बीमार, बेरहम, मादा, माशा, मलाई, मुर्दा, मजा, मुफ्त, मोर्चा, मीना, मुर्गा, मरहम, याद, यार, रंग, रोगन, राह, लश्कर, लगाम, लेकिन, वर्ना, वापिस, शादी, शोर, सितारा, सितार, सरासर, सुर्ख, सरदार, सरकार, सूद, सौदागर, हफ्ता, हजार इत्यादि।
(आ) अरबी शब्द
अदा, अजब, अमीर, अजीब, अजायब, अदावत, अक्ल, असर, अहमक, अल्ला, आसार, आखिर, आदमी, आदत, इनाम, इजलास, इज्जत, इमारत, इस्तीफा, इलाज, ईमान, उम्र, एहसान, औरत, औसत, औलाद, कसूर, कदम, कब्र, कसर, कमाल, कर्ज, क़िस्त, किस्मत, किस्सा, किला, कसम, कीमत, कसरत, कुर्सी, किताब, कायदा, कातिल, खबर, खत्म, खत, खिदमत, खराब, खयाल, गरीब, गैर, जिस्म, जलसा, जनाब, जवाब, जहाज, जालिम, जिक्र, तमाम, तकदीर, तारीफ, तकिया, तमाशा, तरफ, तै, तादाद, तरक्की, तजुरबा, दाखिल, दिमाग, दवा, दाबा, दावत, दफ्तर, दगा, दुआ, दफा, दल्लाल, दुकान, दिक, दुनिया, दौलत, दान, दीन, नतीजा, नशा, नाल, नकद, नकल, नहर, फकीर, फायदा, फैसला, बाज, बहस, बाकी, मुहावरा, मदद, मरजी, माल, मिसाल, मजबूर, मालूम, मामूली, मुकदमा, मुल्क, मल्लाह, मौसम, मौका, मौलवी, मुसाफिर, मशहूर, मजमून, मतलब, मानी, मान, राय, लिहाज, लफ्ज, लहजा, लिफाफा, लायक, वारिस, वहम, वकील, शराब, हिम्मत, हैजा, हिसाब, हरामी, हद, हज्जाम, हक, हुक्म, हाजिर, हाल, हाशिया, हाकिम, हमला, हवालात, हौसला इत्यादि।
(इ) तुर्की शब्द
आगा, आका, उजबक, उर्दू, कालीन, काबू, कैंची, कुली, कुर्की, चिक, चेचक, चमचा, चुगुल, चकमक, जाजिम, तमगा, तोप, तलाश, बेगम, बहादुर, मुगल, लफंगा, लाश, सौगात, सुराग इत्यादि।
(ई) अँगरेजी शब्द
(अँगरेजी) तत्सम तद्भव (अँगरेजी) तत्सम तद्भव
ऑफीसर अफसर थियेटर थेटर, ठेठर
एंजिन इंजन टरपेण्टाइन तारपीन
डॉक्टर डाक्टर माइल मील
लैनटर्न लालटेन बॉटल बोतल
स्लेट सिलेट कैप्टेन कप्तान
हास्पिटल अस्पताल टिकट टिकस
इनके अतिरिक्त, हिन्दी में अँगरेजी के कुछ तत्सम शब्द ज्यों-के-त्यों प्रयुक्त होते है। इनके उच्चारण में प्रायः कोई भेद नहीं रह गया है। जैसे- अपील, आर्डर, इंच, इण्टर, इयरिंग, एजेन्सी, कम्पनी, कमीशन, कमिश्रर, कैम्प, क्लास, क्वार्टर, क्रिकेट, काउन्सिल, गार्ड, गजट, जेल, चेयरमैन, ट्यूशन, डायरी, डिप्टी, डिस्ट्रिक्ट, बोर्ड, ड्राइवर, पेन्सिल, फाउण्टेन, पेन, नम्बर, नोटिस, नर्स, थर्मामीटर, दिसम्बर, पार्टी, प्लेट, पार्सल, पेट्रोल, पाउडर, प्रेस, फ्रेम, मीटिंग, कोर्ट, होल्डर, कॉलर इत्यादि।
(उ) पुर्तगाली शब्द
हिन्दी पुर्तगाली
अलकतरा Alcatrao
अनत्रास Annanas
आलपीन Alfinete
आलमारी Almario
बाल्टी Balde
किरानी Carrane
चाबी Chave
फीता Fita
तम्बाकू Tabacco
इसी तरह, आया, इस्पात, इस्तिरी, कमीज, कनस्टर, कमरा, काजू, क्रिस्तान, गमला, गोदाम, गोभी, तौलिया, नीलाम, परात, पादरी, पिस्तौल, फर्मा, मेज, साया, सागू आदि पुर्तगाली तत्सम के तद्भव रूप भी हिन्दी में प्रयुक्त होते है।
ऊपर जिन शब्दों की सूची दी गयी है उनसे यह स्पष्ट है कि हिन्दी भाषा में विदेशी शब्दों की कमी नहीं है। ये शब्द हमारी भाषा में दूध-पानी की तरह मिले है। निस्सन्देह, इनसे हमारी भाषा समृद्ध हुई है।
रचना अथवा बनावट के अनुसार शब्दों का वर्गीकरण
शब्दों अथवा वर्णों के मेल से नये शब्द बनाने की प्रकिया को 'रचना या बनावट' कहते है।
कई वर्णों को मिलाने से शब्द बनता है और शब्द के खण्ड को 'शब्दांश' कहते है। जैसे- 'राम में शब्द के दो खण्ड है- 'रा' और 'म'। इन अलग-अलग शब्दांशों का कोई अर्थ नहीं है। इसके विपरीत, कुछ ऐसे भी शब्द है, जिनके दोनों खण्ड सार्थक होते है। जैसे- विद्यालय। इस शब्द के दो अंश है- 'विद्या' और 'आलय'। दोनों के अलग-अलग अर्थ है।
(4 )व्युत्पत्ति या रचना की दृष्टि से शब्द भेद
(i)रूढ़ (ii )यौगिक और (iii)योगरूढ़।
(i)रूढ़ शब्द :- जो शब्द हमेशा किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हो तथा जिनके खण्डों का कोई अर्थ न निकले, उन्हें 'रूढ़' कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिन शब्दों के खण्ड सार्थक न हों, उन्हें 'रूढ़' कहते है।
यहाँ प्रत्येक शब्द के खण्ड- जैसे, 'नाक' शब्द का खंड करने पर 'ना' और 'क', दोनों का कोई अर्थ नहीं है।
उसी तरह 'कान' शब्द का खंड करने पर 'का' और 'न', दोनों का कोई अर्थ नहीं है।
(ii)यौगिक शब्द :-जो शब्द अन्य शब्दों के योग से बने हो तथा जिनके प्रत्येक खण्ड का कोई अर्थ हो, उन्हें यौगिक शब्द कहते है।
दूसरे शब्दों में- ऐसे शब्द, जो दो शब्दों के मेल से बनते है और जिनके खण्ड सार्थक होते है, यौगिक कहलाते है।
दो या दो से अधिक रूढ़ शब्दों के योग से यौगिक शब्द बनते है; जैसे- आग-बबूला, पीला-पन, दूध-वाला, घुड़-सवार, डाक +घर, विद्या +आलय
यहाँ प्रत्येक शब्द के दो खण्ड है और दोनों खण्ड सार्थक है।
(iii)योगरूढ़ शब्द :- जो शब्द अन्य शब्दों के योग से बनते हो, परन्तु एक विशेष अर्थ के लिए प्रसिद्ध होते है, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते है।
अथवा- ऐसे यौगिक शब्द, जो साधारण अर्थ को छोड़ विशेष अर्थ ग्रहण करे, 'योगरूढ़' कहलाते है।
दूसरे शब्दों में- ऐसे शब्द, जो यौगिक तो होते है, पर अर्थ के विचार से अपने सामान्य अर्थ को छोड़ किसी परम्परा से विशेष अर्थ के परिचायक है, 'योगरूढ़' कहलाते है।
मतलब यह कि यौगिक शब्द जब अपने सामान्य अर्थ को छोड़ विशेष अर्थ बताने लगें, तब वे 'योगरूढ़' कहलाते है;
जैसे- लम्बोदर, पंकज, दशानन, जलज इत्यादि ।
लम्बोदर =लम्ब +उदर बड़े पेट वाला )=गणेश जी
दशानन =दश +आनन (दस मुखों वाला _रावण)
'पंक +ज' अर्थ है कीचड़ से (में) उत्पत्र; पर इससे केवल 'कमल' का अर्थ लिया जायेगा, अतः 'पंकज 'योगरूढ़ है।
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