नवयुग के अवतरण की सूचना देने वाला पुनर्जागरण आंदोलन 15 वीँ शताब्दी मेँ हुआ था।
पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ होता है – फिर से जागना।
मध्यकाल मेँ यूनानी एवम लैटिन साहित्य को भुलाकर यूरोप की जनता अंधविश्वासों मेँ पड़ गई थी, उसमेँ निराशा की भावना एवं उत्साहहीनता ने जन्म लिया था।
पुनर्जागरण मेँ मध्ययुगीन आडंबरोँ, अंधविश्वास एवं प्रथाओं को समाप्त किया तथा उसके स्थान पर व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, स्वतंत्रता की भावना, उन्नत आर्थिक व्यवस्था एवं राष्ट्रवाद को प्रतिस्थापित किया।
पुनर्जागरण का प्रारंभ इटली के फ्लोरेंस नगर से माना जाता है।
बिजेंटाइन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुनतुनिया का पतन, पुनर्जागरण का एक प्रमुख कारण था।
इटली के महान कवि दांते को पुनर्जागरण का अग्रदूत माना जाता है। इन्होंने इटली की बोलचाल की भाषा टस्कन मेँ डिवाइन कॉमेडी की रचना की।
इटली के निवासी पेट्रॅाक को मानववाद का संस्थापक माना जाता है।
द प्रिंस के रचयिता मैकियावेली को आधुनिक विश्व का प्रथम राजनीतिक चिंतक माना जाता है।
द लास्ट सपर एवं मोनालिसा नामक चित्रोँ के रचयिता लियोनार्डो दा विंसी चित्रकार के अलावा मूर्तिकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं कवि और गायक थे।
इंग्लैण्ड के रोजर बेकन को आधुनिक प्रयोग का जन्मदाता माना जाता है।
जिआटो को चित्रकला का जनक माना जाता है। कोपरनिकस ने बताया पृथ्वी सूर्य के चारोँ ओर घूमती है तथा जर्मनी के केपलर ने इसकी पुष्टि की।
गैलिलियो ने दोलन संबंधी सिद्धांत दिया, जिससे वर्तमान मेँ प्रचलित घड़ियों का निर्माण हुआ।
न्यूटन गुरुत्वाकर्षण के नियम का पता लगाया।
धर्म सुधार आंदोलन
धार्मिक जीवन मे यूरोपीय पुनर्जागरण के प्रभाव, धर्म सुधार आंदोलन के रुप मेँ सामने आए।
पुनर्जागरण से पूर्व यूरोप पर कैथोलिक चर्च का एकछत्र साम्राज्य था। सारा समाज धर्मकेंद्रित, धर्मप्रेरित और धर्मनियंत्रित था।
धर्म सुधार आंदोलन ने कैथोलिक चर्च की बुराइयो को उजागर करते हुए एक नए संप्रदाय प्रोटेस्टेंट को जन्म दिया और तब कैथोलिक चर्च आत्मनिरीक्षण के क्रम मेँ प्रति धर्म सुधार आंदोलन चलाया।
धर्म सुधार आंदोलन मेँ धर्म के मूल स्वरुप के लिए कोई चुनौती नही थी, विरोध केवल व्यवहार एवं कार्यान्वन का था। किसी ने भी ईसा-मसीह, बाइबिल आदि मे अनास्था प्रकट नही की थी।
इंग्लैण्ड की गौरव पूर्ण क्रांति, 1688 ई.
इंग्लैण्ड मेँ 1603 मेँ स्टुअर्ट राजवंश का शासन प्रारंभ हुआ। इस राजवंश के शासक दैवीय अधिकारोँ मेँ विश्वास करते थे।
इंग्लैण्ड मेँ वर्ष 1642 ई. से 1649 ई. तक सप्तवर्षीय गृह-युद्ध हुआ। गृहयुद्ध के पश्चात् चार्ल्स प्रथम को फांसी दे दी गई तथा चार्ल्स द्वितीय को राजा बनाया गया। चार्ल्स द्वितीय की निरंकुशता से जनमत उसके विरुद्ध हो गया।
चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु के बाद जेम्स द्वितीय शासक बना। वह दैवीय सिद्धांतों मेँ विश्वास करता था तथा निरंकुश था।
जेम्स द्वितीय के कार्यकलापों से 1688 ई. में एक क्रांति हुई। इसे रक्तहीन क्रांति अथवा गौरव पूर्ण क्रांति भी कहा जाता है, क्योंकि इस क्रांति मेँ एक बूंद भी रक्त धरती पर नहीँ गिरा।
इसके बाद इंग्लेंड मेँ संसद की सर्वोच्चता की स्थापना हुई।