बिहार में कला एवं संस्कृति
वास्तुकला :-
• कुम्हार (पटना) से एक मौर्यकालीन विशाल कक्ष संभवतः राजमहल का अवशेष मिला, 80 स्तंभ, पत्थर के खंभों के अवशेष बचे, राजमहल संभवतः लकड़ी का बना होगा।
• मौर्यकालीन स्तंभ लेख – ये चार स्थानों लौरिया नंदनगढ़, लौरिया – अरेराज (पश्चिम चंपारण), रामपुरवा (पूर्वी चंपारण) और बसाढ़ (वैशाली) में है।
• बसाढ़ स्तंभ पर सिंह, रामपुरवा पर नटुवा बैल (सांड), लौरिया नंदनगढ़ पर सिंह की आकृति उत्कीर्ण है।
• ये चुनार के धूसर बालू के पत्थर से निर्मित हैं तथा इन पर चमकीली पॉलिस भी की गई है।
• बराबर की पहाड़ियों (गया) में अशोक एवं दशरथ द्वारा आजीवन संप्रदाय के लिए गुफाओं का निर्माण
• आदंतपुरी, नालंदा एवं विक्रमशिला महाविहार का निर्माण।
• सासाराम में शेरशाह का मकबरा – झील के मध्य अष्टकोषी मकबरा, अफगान स्थापत्य शैली का उदाहरण।
मूर्तिकला :-
• पटना के दीदारगंज से प्राप्त यक्षी (स्त्री) की मूर्ति – मौर्यकालीन
• भागलपुर के सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की ताम्रमूर्ति – 75 फीट ऊंचाई, (गुप्तकालीन) वर्तमान में इंग्लैंड के बर्मिंघम संग्रहालय में
• पाल काल में तथ एवं कांसे की मूर्तियों का निर्माण अधिकांश मूर्तियां बुद्ध एवं बौद्ध धर्म से प्रभावित, धीमन एवं बिठ्पाल कांस्य प्रतिमाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चित्रकला :-
• पटना शैली (पटना कलम)
• कंपनी शैली भी कहा जाता है।
• इसे पुरुषों की चित्रशैली भी कहा जाता है।
• तूलिका गिलहरी की पूंछ, ऊंट, सूअर या हिरण के बाल तथा कबूतर या चील के पंखों से बनाते थे।
• कलाकार रंग स्वयं बनाते थे, प्राकृतिक रंगों का प्रयोग।
• दैनिक जीवन, मांगलिक पर्व, वस्तु, दृश्य, पशु-पक्षी चित्रण।
• कणज, अभ्रक और हाथी दांत चित्र के माध्यम।
• प्रमुख चित्रकार – सेवक राम (प्रथम कलाकार), हुलास लाल (पशु पक्षी चित्रण में माहिर), जयराम दास (स्याह कलम के माहिर), फकीरचंद लाल, शिवलाल साहिब।
मधुबनी चित्रकला :-
• 1934 में भूकंप के बदा मधुबनी में जिलाधिकारी विलियम जी. आर्चर ने निरीक्षण के दौरान मधुबनी के भित्ति – चित्रों को देखा।
• भित्ति-चित्र एवं अरिपन के रुप में।
• भित्ति चित्रों में गोसउनी, कोहबर और कोहबर की कोंणियां।
• गोसउनी धार्मिक चित्र है जबकि कोहबर प्रतीक एवं तात्रिक विषयों पर चित्र बनाये जाते हैं।
• पहले केवल भित्ति चित्र बनते थे जबकि वर्तमान में कागज एवं कपड़े पर भी चित्रकारी की जाती है।
• चटक रंगों लाल, पीला, हरा आदि का अधिक प्रयोग होता है।
• पद्मश्री सीता देवी, पद्मश्री भगवती देवी, पद्मश्री गंगा देवी, महासुन्दरी देवी, भारती दयाल आदि प्रमुख चित्रकार हैं।
मंजूषा शैली :-
• बिहुला-बिसारी की प्रेम कथा मुख्य विषय है।
• इसे सर्प चित्रकारी भी कहते हैं।
• रेखा प्रधान, तीन रंगों की कला।
• मुख्यतः भागलपुर क्षेत्र में प्रचलित ~
• चक्रवर्ती देवी, निर्मला देवी प्रमुख चित्रकार हैं। जिन्हें सीता देवी पुरस्कार दिया गया है।
बिहार के लोक नाट्य :-
• विदेशिया – भोजपुर क्षेत्र में लोकप्रिय, पुरुषों द्वारा अभिनीत
• जट जटिन – अविवाहित लड़कियों द्वारा अभिनीत, जट-जटिन के वैवाहिक जीवन का प्रदर्शन
• डोमकच – घरेलू नाट्य, महिलाओं द्वारा प्रस्तुत
• सामा चकेवा – भाई-बहन से संबंधित, प्रश्नोत्तर शेली में, बालिकाओं द्वारा अभिनीत
• किरतनिया – भक्तिपूर्ण लोकनाट्य, श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भकुली बंका
बिहार के लोक नृत्य :-
• कठघोड़वा नृत्य
• लौंडा नृत्य
• करिया झूमर नृत्य
• जोगीड़ा नृत्य
• पंवड़िया नृत्य
• घोषिया नृत्य
• झिझिया नृत्य
• खोलड़िन नृत्य
• विद्यापति नृत्य
• झरनी नृत्य