सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन
उन्नीसवीं शताब्दी के धर्म एवं समाज आंदोलनो ने जनसंख्या के किस वर्ग को मुख्यतः आकर्षित किया - कुल तीन वर्गो 1. बुद्धिजीवी 2. नगरीय उच्च जातियां 3. उदार रजवाड़े B.P.S.C. (Pre) 2005
- उन्नीसवी शताब्दी के धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनो का भारत के आधुनिक इतिहास में विशेष स्थान है।
- इस आंदोलन ने बुद्धिजीवियों और मध्यम वर्ग को सर्वाधिक प्रभावित किया।
- बुद्धिजीवी,नगरीय उच्च जातियां एवं उदार राजवाड़े इस आंदोलन से प्रभावित थे।
किस वर्ग को सर्वप्रथम पश्चिमी सभ्यता ने प्रभावित किया - शिक्षित हिंदू मध्यम वर्ग R.A.S./R.T.S. (Pre) 1996
- शिक्षित हिंदू मध्यम वर्ग को सर्वप्रथम पश्चिमी सभ्यता ने प्रभावित किया।
- नवीन पाश्चात्य शिक्षित वर्ग तर्कवाद, विज्ञानवाद तथा मानववाद से बहुत प्रभावित हुआ।
- भारतीय समाज एवं धर्म सुधारकों ने, इस नवज्ञान से प्रभावित होकर भीतर से हिंदू धर्म और समाज को सुधारने का प्रयत्न किया, और अंध विश्वासों, मूर्ति पूजा तथा तीर्थयात्रा आदि को तर्क के तराजू में तौलकर धार्मिक एवं सामाजिक सुधार किए।
महापुरुषों में से कौन भारतीय जागृति का जनक कहलाता है - राजा राममोहन राय U.P.P.C.S. (Pre) 1994
- राजा राममोहन राय प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने सबसे पहले भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों के विरोध में आंदोलन चलाया।
- उनके नवीन विचारों के कारण ही 19 वीं शताब्दी के भारत में पुनर्जागरण का उदय हुआ।
- राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का पिता भारतीय राष्ट्रवाद का पैंगबर अतीत और भविष्य के मध्य सेतु भारतीय राष्ट्रवाद का जनक आधुनिक भारत का पिता प्रथम आधुनिक पुरुष तथा युगदूत कहा गया।
राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित प्रथम संस्था थी - आत्मीय सभा U.P.P.C.S. (Mains) 2009
- हिंदू धर्म के एकेश्वरवादी मत का प्रचार करने के लिए 1814 ई. में राजा राममोहन राय ने अपने युवा समर्थकों के सहयोग से आत्मीय सभा की स्थापना की।
- 1828 ई. में उन्होंने ब्रह्म सभा के नाम से एक नए समाज की स्थापना की जिसे आगे चलकर ब्रह्म समाज के नाम से जाना गया।
- देवेंद्रनाथ टैगोर ने राजा राममोहन के विचारों के प्रसार के लिए 1839 में तत्वबोधिनी सभा की स्थापना की।
- इस प्रकार राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित प्रथम संस्था आत्मीय सभा थी।
भारतीय राष्ट्रवाद का पैंगबर किसे माना जाता है - राममोहन राय U.P. Lower Sub. (Pre) 2009
ब्रह्म समाज की स्थापना हुई थी, वर्ष - 1828 B.P.S.C. (Pre) 1996
- राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त, 1828 को ब्रह्म सभा नाम से एक नए समाज की स्थापना की, जिसे आगे चलकर ब्रह्म समाज के नाम से जाना गया।
- इस समाज ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और एक ब्रह्म की पूजा का उपदेश दिया।
- यह ऐसे लोगों की जमात थी जो ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे और मूर्ति पूजा से अलग रहते थे।
- इस नवीन धर्म में सामाजिक रीति - रिवाजों एवं धार्मिक कर्मकांडों के लिए कोई स्थान नहीं था।
- ब्रह्म समाज ने रंग, वर्ण अथवा मत पर विचार किए बिना मानवमात्र के प्रति प्रेम तथा जीवन की उच्चतम विधि के रुप में मानवता की सेवा पर बल दिया।
- समाज के सिद्धांतों के मुख्य आधार थे - मानव विवेक, वेद और उपनिषद।
राजा राममोहन राय को राजा की उपाधि किसने दी थी - अकबर II ने U.P.P.C.S. (Pre) 2012
- मुगल बादशाह अकबर द्वितीय ने राजा राममोहन राय को राजा की उपाधि के साथ अपने दूत के रुप में 1830 ई. में तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट विलियम चतुर्थ के दरबार में भेजा था।
- राय को इंग्लैंड में सम्राट से मुगल बादशाह अकबर द्वितीय को मिलने वाली पेंशन की मात्रा बढ़ाने पर बातचीत करनी थी।
- इंग्लैंड के ब्रिस्टल में ही 27 सिंतबर, 1833 को राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई जहां उनकी समाधि स्थापित है।
भारतीय राष्ट्रवाद का जनक किसे माना जाता है - राजा राममोहन राय U.P.R.O./A.R.O. (Mains) 2013
- सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलनों के सूत्रधार राजा राममोहन राय को भारत के नवजागरण का अग्रदूत, अतीत और भविष्य के मध्य सेतु, भारतीय राष्ट्रवाद के जनक, आधुनिक भारत के पिता, नव प्रभात के भोर का तारा, भारतीय राजनैतिक क्रांति के अग्रदूत, नवीन भारत के संदेश वाहक आदि माना जाता है।
ब्रह्म समाज का सिद्धांत आधारित है - एकदेववाद पर U.P.P.C.S. (Pre) 1999/U.P.P.C.S. (Pre) 2005
- 1828 ई. में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की नींव डाली।
- ब्रह्म समाज की स्थापना का उद्देश्य था - एकेश्वरवाद की उपासना, मूर्ति पूजा का विरोध तथा अवतारवाद का खंडन।
- ब्रह्म समाज ने सार्वभौम ईश्वर की उपासना पर बल दिया।
- 1830 ई. में लिखे गए प्रन्यासकरण पत्र के अनुसार इस समाज का उद्देश्य शाश्वत, सर्वाधार, अपरिवर्त्य ईश्वर की पूजा है, जो सारे विश्व का कर्ता और रक्षक है।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में नव हिंदूवाद के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे - स्वामी विवेकानन्द B.P.S.C. (Pre) 1996
- रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं की व्याख्या को साकार करने का श्रेय स्वामी विवेकानन्द (1863 - 1902) को है।
- उन्होंने इस शिक्षा का साधारण भाषा में वर्णन किया।
- स्वामी विवेकानन्द इस नवीन हिंदू धर्म के प्रचारक के रुप में उभरे।
- 1893 ई. में वे शिकागो गए जहां उन्होंने वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन (विश्व धर्म संसद) में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया।
- इस भाषण से उन्होंने पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया।
- इसके बाद उन्होंने अमेरिका और इंग्लैंड में भ्रमण किया और हिंदू धर्म का प्रचार किया।
- स्वामी जी ने हिंदू धर्म के इस पक्ष मुझे मत छेड़ो की बहुत भर्त्सना की।
- उनके अनुसार हिंदू धर्म अब केवल खान - पान तक ही सीमित रह गया था।
- वह निर्धनों के धनियों द्वारा शोषण पर धर्म की चुप्पी से बहुत अप्रसन्न थे।
- उनके अनुसार भूखे व्यक्ति को धर्म की बात करना ईश्वर तथा मानवता का अपमान है।
- विवेकानंद ने कोई राजनीतिक संदेश नहीं दिया, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने लेखों और भाषणों द्वारा नई पीढ़ी में अपने भूतकाल के प्रति एक नवीन आत्मगौरव की भावना जगाई।
- वह एक पक्के देशभक्त थे।
- सुभाष चंद्र बोस ने उनके बारे में कहा था कि जहां तक बंगाल का संबंध है, हम विवेकानंद को आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यत्मिक पिता कह सकते है।
विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्डस रिलीजन्स में भाग लिया था - 1893 में U.P.P.C.S. (Pre) 2013
किस प्रख्यात समाज सुधआरक ने ज्ञानयोग, कर्मयोग तथा राजयोग नामक पुस्तकें लिखीं - स्वामी विवेकानंद U.P. Lower Sub. (Pre) 2015
- स्वामी विवेकानंद ने ज्ञानयोग, कर्मयोग तथा राजयोग नामक पुस्तकें लिखीं।
- 1893 ई. में वे शिकागो गए जहां उन्होंने वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन्स (विश्व धर्म संसद) में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया।
- 1897 ई. में इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
शारदामणि कौन थी - रामकृष्ण परमहंस की पत्नी B.P.S.C. (Pre) 2005
- शारदामणि मुखोपाध्याय जिन्हें शारदा देवी के नाम से जाना जाता है, का विवाह 23 वर्षीय रामकृष्ण परमहंस से 5 वर्ष की उम्र में 1859 ई. में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, वर्ष - 1897 में R.A.S./R.T.S. (Pre) (Re-Exam) 2013
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 ई. में किसने की थी - विवेकानंद P.C.S. (Pre) 2006
रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने की थी - स्वामी विवेकानंद M.P.P.C.S. (Pre) 1996/U.P.P.C.S. (Mains) 2004
- रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने 1897 ई. में की (1909 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत इसे विधिवत औपचारिक रुप से पंजीकृत कराया गया)।
- रामकृष्ण मिशन का कलकत्ता के वेल्लूर और अल्मोड़ा के मायावती नामक स्थानों पर मुख्यालय खोला गया।
- मिशन का नामकरण रामकृष्ण परमहंस के नाम पर हुआ था।
- यह उन्नीसवीं सदी का अंतिम महान धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलन था।
- रामकृष्ण मिशन का उद्देश्य धार्मिक एवं सामाजिक सुधार है, किंतु यह भारत की प्राचीन संस्कृति से अपनी प्रेरणा ग्रहण करता है।
- यह शुद्ध वेदांत के सिद्धांत को अपना आदर्श मानता है।
- इसका लक्ष्य मनुष्य के भीतर की उच्चतम आध्यत्मिकता का विकास करना है, किंतु साथ ही, यह हिंदू धर्म में पीछे विकसित मूर्ति पूजा जैसी चीजों की कीमत और उपयोगिता भी स्वीकार करता है।
- मिशन की दूसरी विशेषता है सभी धर्मो की सच्चाई में विश्वास।
- स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि सभी विभिन्न धार्मिक विचार एक ही मंजिल तक पहुँचने के केवल विभिन्न रास्ते है।
वेदों के पुनरुत्थान का श्रेय किसे है - स्वामी दयानंद सरस्वती U.P.P.C.S. (Pre) 1995
- आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती शुद्ध वैदिक परंपरा में विश्वास करते थे।
- उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा दिया।
- उत्तर वैदिक काल से आज तक सभी अन्य मतों को उन्होंने पाखंड या झूठे धर्म की संज्ञा दी।
- 1863 ई. में उन्होंने झूठे धर्मों का खंडन करने के लिए पांखड खंडिनी पताका लहराई।
- स्वामी दयानंद सरस्वती वेदों को भारत के आधार स्तंभ के रुप में देखते थे।
- उनका विश्वास था कि हिंदू धर्म और वेद जिस पर भारत का पुरातन समाज टिका था, शाश्वत, अपरिवर्तनीय, धर्मातीत तथा दैवीय है।
- इसलिए उन्होंने वेदों की ओर लौटो तथा वेद ही समस्त ज्ञान के स्त्रोत है, का नारा दिया।
- उन्होंने पुराणों जैसे परवर्ती हिंदू धर्म ग्रंथों की प्रामाणिकता को अस्वीकार किया।
- उनके विचार से ये पुराण हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा जैसी कुरीतियों और अन्य अंधविश्वासों के लिए उत्तरदायी थे।
- स्वामी दयानंद सरस्वती ऐसे पहले हिंदू सुधारक थे, जिन्होंने बचाव के स्थान पर प्रहार की रणनीति अपनाई और हिंदू विश्वास की रक्षा करते हुए ईसाइयों तथा मुसलमानों आलोचकों के प्रहार के विरुद्ध उन्हें उनके दोषों के आधार पर चुनौती दी।
- श्री मती एनी बेसेंट के अनुसार स्वामी दयानंद ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि भारत भारतवासियों के लिए है।
- स्वामी दयानंद को उनके धार्मिक सुधार प्रयासों के कारण भारत का मार्टिन लूथर किंग कहा जाता है।
आर्य समाजा की स्थापना का वर्ष है - 1875 U.P. Lower Sub. (Pre) 2009
वेदों की ओर चलो किसने कहा था - दयानंद सरस्वती M.P.P.C.S. (Pre) 1997
कौन भारत का मार्टिन लूथर कहलाता है - स्वामी दयानंद सरस्वती U.P.P.C.S. (Mains) 2005/U.P.U.D.A/l.D.A.(Pre) 2007
दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित है - आर्य समाज B.P.S.C. (Pre) 1999
- दयानंद सरस्वती (मूलशंकर) ने 7 अप्रैल, 1875 को बंबई में आर्य समाज की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रुप से पुनः स्थापना करना था।
- 1877 ई. में आर्य समाज का अधिक प्रचार हुआ और उसका मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया।
- शुद्ध वैदिक परंपरा में विश्वास के चलते स्वामी जी ने पुनः वेदों की ओर चलो का नारा दिया।
- स्वामी दयानंद का उद्देश्य था कि भारत को धार्मिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय रुप से एक कर दिया जाए।
- धार्मिक क्षेत्र में वह मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्रद्धा, तंत्र, मंत्र तथा झूठे कर्मकांडो को स्वीकार नहीं करते थे।
- वह वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते थे तथा उपनिषद काल तक के साहित्य को स्वीकार करते थे।
- आर्य समाज के नियम तथा सिद्धांत सबसे पहले बंबई में गठित किए गए।
- बाद में उसे 1877 ई. में लाहौर में संपादित कर एक निश्चित रुप दिया गया।
- आर्य समाज का प्रचार - प्रसार पंजाब में अत्यधिक सफल रहा तथा कुछ सीमा तक उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान में भी इसे सफलता मिली।
- लाला हंसराज, पंडित गुरुदत्त, लाला लाजपत राय तथा स्वामी श्रद्धानंद इसके विशिष्ट कार्यकर्ताओं में से थे।
- 1892 - 93 ई. में आर्य समाज दो गुटों में बंट गया।
- एक गुट पाश्चात्य शिक्षा का समर्थक था जबकि दूसरा गुट पाश्चात्य शिक्षा का विरोधी।
- पाश्चात्य शिक्षा के विरोधियों में स्वामी श्रद्धानंद, लेखराज और मुंशीराम प्रमुख थे।
- इन लोगों ने 1902 ई. में गुरुकुल की स्थापना की।
- पाश्चात्य शिक्षा के समर्थकों में लाला लाजपत राय तथा हंसराज प्रमुख थे।
- इन लोगों ने दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की।
सत्यार्थ प्रकाश की रचना की गई थी - स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा B.P.S.C. (Pre) 2005/P.C.S. (Mains) 2006/ U.P.R.O./A.R.O. (Mains) 2013
- स्वामी दयानंद का जन्म 1824 ई. में गुजरात की मोरबी रियासत (कठियावाड़) के एक ब्राह्मण कुल में हुआ था।
- उन्होंने 1860 ई. में मथुरा में स्वामी विरजानंद जी से वेदों के शुद्ध अर्थ तथा वैदिक धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा प्राप्त की।
- 1863 ई. में उन्होंने पाखंड खंडिनी पताका लहराई।
- 1875 ई. में उन्होंने बंबई में आर्य समाज की स्थापना की।
- उनके विचार उनकी प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में वर्णित है।
- उनकी अन्य रचनाओं में पाखंड खंडन, वेदभाष्य भूमिका, ऋग्वेद भाष्य, अद्वैत मंत्र का खंडन, पंच महायज्ञ विधि तथा वल्लभाचार्य मत खंडन प्रमुख है।
सत्यार्थ प्रकाश पवित्र पुस्तक है - आर्य समाज की U.D.A./L.D.A. (Pre) 2007
संगठनों में से किसने शुद्धि आंदोलन का समर्थन किया - आर्य समाज U.P.P.C.S. (Pre) 2010
- स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 ई. में बंबई में स्थापित आर्य समाज ने धर्म परिवर्तित हिंदुओं की हिन्दू धर्म में वापसी हेतु शुद्धि आंदोलन का समर्थन किया था।
किसने कहा था, अच्छा शासन स्वशासन का स्थानापन्न नहीं है - स्वामी दयानंद P.C.S. (Pre) 2005
- स्वामी दयानंद सरस्वती विदेशी दासता को एक अभिशाप मानते थे और स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र के हिमायती थे।
- उनके आर्थिक विचारों में स्वदेशी का विशेष महत्व था।
- राजनीतिक क्षेत्र में वे कहते थे कि बुरे से बुरा देशी राज्य अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से अच्छा है।
- उनकी शिक्षा के फलस्वरुप उनके अनुयायियों में स्वदेशी और देशभक्ति की भावना कूट - कूट कर भरी थी और भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में भी ये लोग अग्रगामी रहे।
वह बंगाली नेता कौन था जिसने सामाजिक - धार्मिक सुधारों का विरोध किया और रुढ़िवादिता का समर्थन किया - राधाकांत देव U.P. Lower Sub. (Pre) 2008
- राधाकांत देव ने 1830 ई. में बंगाल में धर्म सभा की स्थापना कर सामाजिक - धार्मिक सुधारों का विरोध किया और रुढ़िवादिता का समर्थन किया।
किस व्यक्ति ने सर्वप्रथम स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया और हिंदी को राष्ट्रभाषा माना - स्वामी दयानंद U.P. Lower Sub. (Pre) 2000
- सर्वप्रथम स्वामी दयानंद सरस्वती ने स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया और हिंदी को राष्ट्रभाषा के रुप में स्वीकार किया।
- उन्होंने ही सबसे पहले विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी को अपनाने पर बल दिया था।
- ये सभी विचार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य अंग बने।
- इस दृष्टि से आर्य समाज ने राजनीतिक चेतना की जागृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- दयानंद सरस्वती के अनुसार बुरे से बुरा देशी राज्य अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से अच्छा है।
- उनके आर्थिक विचारों में स्वदेशी का विशेष महत्व था।
कौन भारत का मार्टिन लूथर कहलाता है - स्वामी दयानंद सरस्वती U.P.P.C.S. (Mains) 2005/U.D.A./L.D.A. (Pre) 2007
वेदों की ओर चलो किसने कहा था - दयानंद सरस्वती M.P.P.C.S. (Pre) 1997
आर्य समाज की स्थापना का वर्ष है - 1875 U.P. Lower Sub. (Pre) 2009
प्रार्थना समाज संस्था के संस्थापक कौन थे - महादेव गोविंद रानाडे P.C.S. (Pre) 2004
- प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 ई. में बंबई में आचार्य केशवचंद्र सेन की प्रेरणा से आत्माराम पांडुरंग द्वारा की गई थी।
- महादेव गोविंद रानाडे इस संस्था से 1869 में जुड़े।
- इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध स्त्री - पुरुष की विवाह की आयु में वृद्धि, विधवा विवाह एवं स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देना था।
- रानाडे का सामाजिक सुधार कार्यक्रमों में उनके दो अन्य सहयोगी थे - धोंदो केशव कर्वे तथा विष्णु शास्त्री।
- रानाडे तथा कर्वे ने विधवा पुनर्विवाह आंदोलन का संचालन किया और विधवाओं को शिक्षा देने के लिए विधवा आश्रम संघ की स्थापना की।
- इस आश्रम का उद्देश्य विधवाओं को शिक्षिकाओं, परिचारिकाओं अथवा दाइयों के रुप में प्रशिक्षित करके आत्मनिर्भर बनाना था।
- धोंदो केशव कर्वे विधवा पुनर्विवाह संघ के सचिव थे।
- रानाडे का उल्लेख पश्चिमी भारत में सांस्कृतिक पुर्नजागरण के अग्रदूत के रुप में किया जाता है।
किसने महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज की स्थापना की थी - आत्माराम पांडुरंग ने U.P.U.D.A./L.D.A. (Mains) 2010
देव समाज का संस्थापक कौन था - शिवनारायण अग्निहोत्री U.P.P.C.S. (Pre) 2005/U.P. Lower Sub. (Pre) 2002/U.P. Lower Sub. (Pre) 2003
- देव समाज की स्थापना 1887 ई. में शिवनारायण अग्निहोत्री ने लाहौर में की थी।
- ये ब्रह्म समाज के पूर्व अनुयायी थे।
- इस समाज के उपदेशों को देवशास्त्र नामक एक पुस्तक में संकलित किया गया है।
- इसमें प्रभु की सत्ता, आत्मा की अमरता, गुरु की महत्ता और सत्कार्यों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- 1913 ई. के बाद शिवनारायण अग्निहोत्री द्वारा अपने द्वितीय पुत्र देवानंद को आध्यत्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त करने के बाद इस आंदोलन की सार्वजनिक लोकप्रियता समाप्त हो गई।
किसने 1873 ई. में सत्यशोधक समाज की स्थापना की - ज्योतिबा फुले U.P.P.C.S. (Pre) 1997/B.P.S.C. (Pre) 1995
- 1873 ई. में सत्यशोधक समाज की स्थापना ज्योतिबा फुले ने की थी।
- इनका जन्म 1827 ई. में एक माली के घर हुआ था।
- इन्होंने शक्तिशाली गैर - ब्राह्मण आंदोलन का संचालन किया।
- इन्होंने अपनी पुस्तक गुलामगिरी (1872) एवं अपने संगठन सत्यशोधक समाज के द्वारा पाखंडी ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी धर्म ग्रंथों से निम्न जातियों की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया।
गुलामगीरी का लेखक कौन था - ज्योतिबा फुले U.P.P.C.S. (Pre) 2000
सत्यशोधक आंदोलन चलाया था - ज्योतिबा फुले ने U.P.P.C.S. (Mains) 2009
पिछड़े वर्गो का उत्थान किसका मुख्य कार्यक्रम था - सत्यशोधक समाज I.A.S. (Pre) 1993
- पिछड़े वर्गो का उत्थान सत्यशोधक समाज का मुख्य कार्यक्रम था।
- इसकी स्थापना 1873 ई. में ज्योतिबा फुले ने की थी।
- यह आंदोलन दलितों और निम्न जाति के लोगों के कल्याण के लिए चलाया गया।
- अपनी ब्राह्मण - विरोधी गतिविधियों का संगठित रुप में प्रसार करने के लिए उन्होंने आलोचनात्मक ग्रंथों ---- सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक तथा गुलामगिरी की रचना की।
राधास्वामी सत्संग के संस्थापक कौन थे - शिवदयाल साहब U.P.P.C.S. (Pre) 2002
- राधास्वामी सत्संग आंदोलन की स्थापना 1861 ई. में आगरा के एक महाजन या बैंकर तुलसीराम, जो शिवदयाल साहब या स्वामी जी महाराज के नाम से लोकप्रिय थे, ने की।
- राधास्वामी मत को मानने वाले लोग एक ही परमेश्वर, गुरु की महत्ता, संतो के साथ (सत्संग) तथा साधारण सामाजिक जीवन में विश्वास करते थे।
- उनका मानना था कि आध्यत्मिक उपलब्धियों के लिए सांसारिक जीवन का परित्याग आवश्यक है तथा यह भी कि सभी जन सच्चें है।
- यह पंथ मंदिरों - तीर्थों अथवा पवित्र स्थलों को कोई महत्व नहीं देता था।
- धर्म, दान के कार्य, सेवा और प्रार्थना की भावना इसके आवश्यक कर्तव्य थे।
महाराष्ट्र के किस सुधारक को लोकहितवादी कहा जाता था - गोपाल हरि देशमुख M.P.P.C.S. (Pre) 1995
- महाराष्ट्र के समाज सुधारक गोपाल हरि देशमुख (1823 - 92) लोकहितवादी के रुप में प्रख्यात थे।
- पेशे की दृष्टि से न्यायधीश गोपाल हरि 1880 ई. में गवर्नर जनरल की काउसिंल के सदस्य भी रहे।
- ये महान समाज सुधारक तथा बौद्धिक चिंतक थे।
- इन्होंने बौद्धिक दृष्टिकोण का परिष्कार करने तथा देश की समस्याओं का समाधान करने के लिए लोगों के सम्मुख आत्मनिर्भर बनने तथा पश्चिमी शिक्षा की आवश्यकता का पक्ष प्रस्तुत किया।
- उन्होंने स्त्री आंदोलन का समर्थन करते हुए स्त्री शिक्षा का प्रसार का पक्ष लिया।
- ये राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता के समर्थक के रुप में हाथ से बुने हुए खादी के वस्त्र पहनकर 1876 ई. में दिल्ली दरबार में भी उपस्थित हुए थे।
महाराष्ट्र में विधवा पुनर्विवाह हेतु अभियान का नेतृत्व किया - विष्णु परशुराम पंडित ने U.P. Lower Sub. (Pre) 2013
- महाराष्ट्र में विधवा पुनर्विवाह हेतु प्रथम अभियान का नेतृत्व विष्णु परशुराम पंडित ने किया।
- उन्होंने वर्ष 1850 में विडो रिमैरिज सोसाइटी की स्थापना की थी और साथ ही विधवा - पुनर्विवाह आंदोलन भी चलाया था।
- बी.एम.मालाबारी बाल - विवाह प्रथा को वैधानिक रुप से समाप्त करने के लिए प्रसिद्ध है।
19 वीं सदी के महानत्तम पारसी समाज सुधारक थे - बहरामजी एम. मालाबारी R.A.S./R.T.S. (Pre) 2010
- 19 वीं सदी के महानत्तम पारसी समाज सुधारक बहरामजी एम. मालाबारी थे।
- उनका जन्म बड़ौदा के पारसी में 1853 ई. में हुआ था।
- इन्होंने बाल विवाह के खिलाफ तथा विधवा विवाह के समर्थन में एक परिपत्र का संपादन किया था।
- 1891 ई. का सम्मति आयु अधिनियम (Age of Consent Act) इन्हीं के प्रयासों से पारित हुआ था।
दि एज ऑफ कॉसेट एक्ट किस वर्ष पारित हुआ - 1891 P.C.S. (Pre) 2013
किसने प्रमुख रुप से विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया और उसे कानूनी रुप से वैध बनाने में सफलता प्राप्त की - ईश्वर चंद्र विद्यासागर U.P.P.C.S. (Mains) 2012
- कलकत्ता के संस्कृत कालेज के आचार्य ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह के लिए अथक संघर्ष किया।
- इन्होंने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि वेदों में विधवा विवाह को मान्यता दी गई है।
- इनके प्रयासों के फलस्वरुप 26 जुलाई, 1856 में हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ।
1843 के धारा 5 ने किस बात को गैर कानूनी बना दिया - गुलामी U.P.P.C.S. (Mains) 2007
- लॉर्ड एलनबरो के काल में 1843 के धारा 5 ने गुलामी (दासता) को गैर कानूनी बना दिया।
- 1833 के चार्टर में एक धारा जोड़ी गई थी, जिसमें दासता को शीघ्रतिशीघ्र समाप्त करने को कहा गया था।
- अंत में 1843 में समस्त भारत में दासता अवैध घोषित कर दी गई और मालिकों को कोई प्रतिकर दिए बिना सभी दास स्वतंत्र कर दिए जाए।
विवरण पर विचार कीजिए ------ 1853 में जन्में ये पश्चिमी भारत के पारसी थे। ये इंडियन स्पपेक्टेटर तथा वॉयस ऑफ इंडिया के संपादक थे। ये एक समाज सुधारक थे और सम्मति आयु अधिनियम, 1891 के पक्ष में प्रमुख संघर्षकर्ता थे। उपर्युक्त पैराग्राफ किसके विषय में है - बहरामजी मालाबारी U.P.R.O./A.R.O. (Pre) 2016
- बहरामजी मालाबारी एक पारसी थे।
- इन्होंने इंडियन स्पेक्टरर तथा वॉयस ऑफ इंडिया का संपादन किया था।
- ये सम्मति आयु अधिनियम (1891) के प्रबल पक्षधर थे।
- इस अधिनियम के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 12 वर्ष कर दी गई थी।
- बाल गंगाधर तिलक ने इस अधिनियम का विरोध किया।
बाल विवाह प्रथा को नियंत्रित करने हेतु 1872 के सिविल मैरिज एक्ट ने लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र निर्धारित किया - 14 वर्ष U.P.P.C.S. (Pre) 2000
- 1872 ई. में एक कानून द्वारा, जिसे प्रायः नेटिव या सिविल मैरिज एक्ट कहते थे, 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओं तथा 18 वर्ष से कम आयु के लड़को का विवाह वर्जित कर दिया गया तथा बहुपत्नी प्रथा भी समाप्त कर दी गई लेकिन यह हिंदू - मुस्लिम एवं अन्य मान्यता प्राप्त धर्मालंबियों पर लागू नहीं होता था और इसका भारतीय समाज पर कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ।
- एक पारसी सुधारक बी.एम. मालाबारी के प्रयत्नों के पलस्वरुप 1891 में सम्मति आयु अधिनियम (Age of Consent Act) पारित किया गया जिसमें 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- सम्मति आयु अधिनियम, 1892 का बाल गंगाधर तिलक ने विरोध किया था।
किसने 1872 में नेटिव मैरिज एक्ट को पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी - केशवचंद्र सेन U.P.P.C.S. (Mains) 2011
- केशवचंद्र सेन ने 1872 ई. के नेटिव मैरिज एक्ट को पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- इस एक्ट से लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष तथा लड़को के लिए न्यूनतम 18 वर्ष निर्धारित की गई थी।
- इसे ब्रह्म विवाह अधिनियम भी कहा जाता है।
शारदा अधिनियम के अंतर्गत लड़कियो एवं लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः कितनी निर्धारित की गई थी - 14 एवं 18 U.P.P.C.S. (Pre) 2012/U.P.R.O./A.R.O. (Mains) 2013
- 1929 ई. में अजमेर निवासी एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. हरविलास शारदा के प्रयत्नों से एक बाल विवाह निषेध कानून बन पाया।
- उन्हीं के नाम पर ही इसे शारदा अधिनियम (शारदा एक्ट) कहा गया।
- इस अधिनियम के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष एवं लड़कों की 18 वर्ष निर्धारित की गई।
थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना किसने की - मैडम एच.पी. ब्लावेट्स्की B.P.S.C. (Pre) 2011
- थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना एक रुसी महिला मैडम एच.पी.ब्लावेट्स्की अमेरिकी सैनिक अधिकारी कर्नल अल्कॉट, विलियम क्वॉन जज एवं अन्य द्वारा 1875 ई. में न्यूयॉर्क में की गई थी।
- इस सोसाइटी के संस्थापक 1882 ई. में मद्रास के पास अड्यार नामक स्थान पर सोसाइटी का मुख्यालय स्थापित किये जो बाद में इसका अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय बना।
- इसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन हिंदू धर्म में लोगों के आत्मविश्वास को जगाना और बढ़ाना तथा धर्म को समाज सेवा का मुख्य आधार बनाना था।
सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना किसने की थी - गोपाल कृष्ण गोखले
राजा राममोहन राय | ब्रह्म समाज | 1828 ई. में |
स्वामी दयानंद सरस्वती | आर्य समाज | 1875 ई. में |
महादेव गोविंद रानाडे | प्रार्थना समाज | 1869 ई. में |
स्वामी विवेकानंद | रामकृष्ण मिशन | 1897 ई. में |
ज्योतिबा फुले | सत्यशोधक समाज | 1873 ई. में |
एनी बेसेंट | थियोसोफिकल सोसाइटी | 1875 ई. में |
भारत में थियोसोफिकल सोसाइटी की सफलता मुख्यतः थी - एनी बेसेंट के कारण U.P.U.D.A./L.D.A. (Mains) 2010
- 1879 ई. में कर्नल अल्काट एवं मैडम ब्लावत्सकी भारत आए तथा मद्रास में अड्यार के पास थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्य बनी, तथा 1893 ई. में भारत आकर उन्होंने सोसाइटी के लिए सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभाई।
- श्री मती एनी बेसेंट ने प्राचीन हिंदू धर्म को विश्व का अत्यधिक गूढ़ एवं आध्यात्मिक धर्म माना।
- थिसोसोफी या ब्रह्म विद्या हिंदू धर्म के आध्यत्मिक दर्शन और कर्म सिद्धांत तथा आत्मा के पुनर्जन्म के सिद्धांत का समर्थन करती थी।
- इसी कारण एनी बेसेंट भारतीय लोगों को इससे जोड़ सकी, जो इसकी सफलता का मुख्य कारण था।
किसने कहा कि यदि भगवान अस्पृश्यता को सहन करते हैं तो मै उन्हें कभी भगवान नहीं मानूंगा - बाल गंगाधर तिलक U.P.P.C.S. (Spl) (Mains) 2004
- छुआछूत उन्मूलन के लिए आयोजित एक सम्मेलन में तिलक ने कहा था, यदि भगवान भी छुआछूत को बरदाश्त करे, तो मै भगवान को नहीं मानूंगा।
- तिलक को लोग प्रायः लोकमान्य और भारत का बेताज बादशाह कहते थे।
भारत में नारी - आंदोलन इनकी प्रेरणा से प्रारंभ हुआ - ज्योतिबा फुले B.P.S.C. (Pre) 2008
- भारत में नारी - आंदोलन ज्योतिबा फुले की प्रेरणा से प्रारंभ हुआ।
- ज्योतिबा फुले मानते थे कि महिलाओं एवं दलितों का उत्थान करके ही सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सकता है।
- 1848 ई. में इन्होंने लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला।
- यह लड़कियों के लिए भारत का प्रथम स्कूल था आधुनिक भारत में महिला आंदोलन की प्रेरणा स्त्रोत रमाबाई रानाडे रही है।
- महादेव गोविंद रानाडे की पत्नी श्री मती रमाबाई ने सेवा सदन नामक संगठन की स्थापना की थी।
दार - उल - उलूम की स्थापना की थी - मौलाना हुसैन अहमद U.P.P.C.S. (Mains) 2014
- दार - उल - उलूम देवबंद के संस्थापक सदस्यों में मौलाना हुसैन अहमद भी थे।
- दार - उल - उलूम देवबंद की स्थापना वर्ष 1866 में हुई थी।
ब्रह्म समाज, रामकृष्ण मिशन, और आर्य समाज में क्या समानता थी - तीनों ही राजनैतिक उद्देश्यों के लिए नहीं बने, लेकिन तीनो ने ही देशभक्ति की भावना के विकास में सहायता दी R.A.S./R.T.S. (Pre) 2008
- ब्रह्म समाज, रामकृष्ण मिशन और आर्य समाज तीनों ही संगठन समाज सुधार, शिक्षा, के विकास एवं देशभक्ति की भावना के विकास में सहायक सिद्ध हुए।
- ये तीनों ही संगठन राजनैतिक उद्देश्यों के लिए नहीं बने थे बल्कि इनका उद्देश्य भारत में सामाजिक - धार्मिक - सांस्कृतिक सुधार करना था।
- इन तीनों ने ही देशवासियों को जागृत कर देशभक्ति की भावना के विकास में सहायता दी।
देवबंद आंदोलन, यू.पी. (संयुक्त प्रांत) में किस वर्ष में आरंभ हुआ था - 1866 ई. U.P.P.C.S. (Pre) 2016
- देवबंद आंदोलन की शुरुआत मौलाना हुसैन अहमद एवं अन्य लोगो द्वारा 1866 ई. में देवबंद, यू.पी. (संयुक्त प्रांत) में दार - उल - उलूम की स्थापना के साथ हुई।
1924 का बंगाल का तारकेश्वर आंदोलन किसके विरुद्ध था - मंदिरों में भ्रष्टाचार U.P.P.C.S. (Pre) (Re-Exam) 2015
- वर्ष 1924 में बंगाल के तारकेश्वर शिव मंदिर के भ्रष्ट महंत के विरुद्ध तारकेश्वर आंदोलन चला था।
- महंत पर एक सरकारी कर्मचारी की पत्नी के साथ अवैध संबंध तथा मंदिर के धन के दुरुपयोग जैसे आरोप लगे थे।
राजा राममोहन राय | आत्मीय सभा | 1815 ई. में |
देवेंद्रनाथ टैगोर | तत्वबोधिनी सभा | 1839 ई. में |
गोपाल कृष्ण गोखले | सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटी | 1905 ई. में |
मुकुंदराव पाटिल & शंकरराव जाधव | बहुजन समाज | 1910 ई. में |
हाली पद्धति संबंधित थी - बंधुआ मजदूर से
- हाली पद्धति बंधुआ मजदूर एवं बंधुआ मजदूरी से संबंधित है, हाली पद्धति के अंतर्गत बारदोली क्षेत्र में कपिलराज जनजाति के लोगों को उच्च जातियों के यहां पुश्तैनी मजदूर के रुप में कार्य करना होता था।
Show less