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हाल ही में झारखंड के सिमडेगा के बेसराजारा बाजार टांड (Besrazara Bazaar Tand) में ग्रामीणों ने एक व्यक्ति की पिटाई कर दी और बाद में पुलिस की मौजूदगी में उसे जिंदा जला दिया।
कथित तौर पर पेड़ों को अवैध रूप से काटने और उन्हें बाजार में बेचने के लिए उस व्यक्ति को जिंदा जला दिया गया था, जिसे ‘खुंटकट्टी’ कानून का उल्लंघन माना जाता है।
ग्रामीणों के अनुसार, ग्राम सभा की बैठकों के दौरान मृतक को कम से कम दो बार चेतावनी दी गई थी।
उसे पेड़ों को काटने से रोकने के लिए कहा गया, लेकिन उसने चेतावनियों को नहीं सुना। इस प्रकार, ग्रामीणों ने उसे सबक सिखाने का फैसला किया।
खुंटकट्टी प्रणाली क्या है ?
‘खुंटकट्टी’ प्रणाली आदिवासी लोगों द्वारा भूमि का संयुक्त स्वामित्व है।
इस प्रणाली के तहत, मुंडा आदिवासी आमतौर पर जंगलों को साफ करते हैं और भूमि को खेती के लिए उपयुक्त बनाते हैं। खेती योग्य भूमि पर पूरे कबीले का स्वामित्व होता है न कि किसी व्यक्ति विशेष का।
खुंटकट्टी प्रणाली का इतिहास →
अंग्रेजों और बाहरी-जमींदारों के आगमन के साथ, इस प्रणाली को 1874 तक जमींदारी प्रणाली से बदल दिया गया था।
यह आदिवासियों के बीच कर्ज और जबरन मजदूरी का कारण बना।
ऋणग्रस्तता के परिणामस्वरूप, बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा आदिवासी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया था।
विद्रोह का प्रभाव →
बिरसा मुंडा आंदोलन ने उनकी समस्याओं के प्रति सरकार के रवैये को जमीनी स्तर पर प्रभावित किया।
इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने 1902 और 1910 के दौरान उनके लिए सर्वेक्षण और बंदोबस्त संचालन किया।
अंत में, सरकार ने अनिवार्य बेगार प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय लिया और 1903 का काश्तकारी अधिनियम पारित किया।
1903 के काश्तकारी अधिनियम ने मुंडारी खुंटकट्टी प्रणाली (Mundari Khuntkatti System) को मान्यता दी।
सरकार ने 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम भी पारित किया।
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