1899 में
1901 में
1903 में
1905 में
ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का सुझाव सबसे पहले कृष्ण कुमार मित्र ने दिया था। सर्वप्रथम कृष्ण कुमार मित्र की साप्ताहिक पत्रिका संजीवनी के 13 जुलाई, 1905 के अंक में सुझाया गया तथा 7 अगस्त, 1905 को कोलकाता टाउन हाल में होने वाली बैठक में पर्याप्त संकोच के साथ सुरेन्द्र नाथ बनर्जी जैसे नेताओं ने इसे स्वीकार किया था। अरविन्द घोष ने भी अपनी स्वदेशी विचारधारा के तहत ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार का सुझाव दिया था। लेकिन गांधी ने जब असहयोग आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का सुझाव दिया तब रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे निष्ठुर बर्बादी की संज्ञा दी।
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