संस्कृतेतर छंदो को इंगित करने के लिए
कुछ आधुनिक भारतीय भाषाओं के आरंभिक रुपों को इंगित करने के लिए
वैदिक कर्मकांडों के त्याग को इंगित करने के लिए
राजपूतों में से जातिच्युत लोगों को इंगित करने के लिए
सर्वप्रथम पतंजलि निशब्द संस्कार से ही शब्दों के लिए अपभ्रंश का प्रयोग किया था। छठी से 12 वीं शताब्दी तक देशी भाषाओं को अध्यक्ष कहा जाता है। मध्यकालीन संस्कृत ग्रंथ में कुछ आधुनिक भारतीय भाषाओं के आरंभिक रुपों को इंगित करने के लिए अपभ्रंश का प्रयोग होता है।
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