अनुच्छेद 21
अनुच्छेद 25
अनुच्छेद 226
अनुच्छेद 300A
देश पिछले कुछ हफ्तों से विध्वंस अभियान का उन्माद देख रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300A में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "कानून के अधिकार के बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा"।
बुलडोज़र के माध्यम से त्वरित 'न्याय' सुनिश्चित करने का विचार उत्तर प्रदेश में उत्पन्न हुआ। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के विरोध में उत्तर प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने में कथित रूप से शामिल लोगों से हर्जाना वसूलने के आदेश पारित किये।
राज्य सरकार का दावा है कि ये विध्वंस, अवैध अतिक्रमण के जवाब में हैं।
हालाँकि तथ्य यह है कि ये मनमाने ढंग से विध्वंस एक विशेष समुदाय के कथित दंगाइयों के खिलाफ किये जा रहे हैं और इसका उद्देश्य दंगों में शामिल लोगों को सामूहिक रूप से सज़ा देना है।
विध्वंस अभियान कैसे समस्याग्रस्त
पर्याप्त आवास का अधिकार
आवास का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय →
ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम निर्णय 1985, (Olga Tellis vs Bombay Municipal Corporation judgment in 1985):
न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को बिना तर्क के बल प्रयोग कर तथा उन्हें समझाने का मौका दिये बिना बेदखल करना असंवैधानिक है।
यह उनके आजीविका के अधिकार (Right to Livelihood) का उल्लंघन है।
मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) →
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे की व्याख्या करते हुए कहा कि "कानून की उचित प्रक्रिया" "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का एक अभिन्न अंग है, यह समझाते हुए कि ऐसी प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और उचित एवं तर्कसंगत होनी चाहिये।
यदि कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया काल्पनिक, दमनकारी और मनमानी प्रकृति की है तो इसे प्रक्रिया बिल्कुल नहीं माना जाना चाहिये तथा इस प्रकार अनुच्छेद 21 की सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जाएगा।
नगर निगम, लुधियाना बनाम इंद्रजीत सिंह (2008) →
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि नगरपालिका कानून के तहत नोटिस देने का अधिकार प्रदान किया जाता है, तो इस अधिकार का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिये।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि कोई भी प्राधिकरण बिना नोटिस दिये तथा कब्ज़ा करने वालों को सुनवाई का अवसर दिये बिना, अवैध निर्माणों हेतु भी सीधे विध्वंस कार्य नही़ कर सकता है।
यह उचित समय है कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था के संरक्षक के रूप में न्यायपालिका कार्य करे और कार्यपालिका शक्ति के बेलगाम प्रयोग पर आवश्यक रोक लगाए।
न्यायालयों को राष्ट्रवादी-लोकलुभावन विमर्श का मुकाबला करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानून का उपयोग करना चाहिये।
आपराधिक कृत्य के दंडात्मक परिणाम के रूप में विध्वंस अभियान का औचित्य पूरी तरह से आपराधिक न्याय के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है।
विध्वंस अभियानों का संचालन एक प्रतिशोधी उपाय के रूप में यहांँ तक कि हिंसा को रोकने के लिये घोषित उद्देश्य के साथ तोड़-फोड़ करना कानून के शासन के सिद्धांत का उल्लंघन है।
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