जो बच्चे संस्कारहीन और अविवेकी हैं और जो अपने भविष्य को नहीं देख पाते।
जो माँ-बाप बहू-बेटों के परिवार का सहारा बनकर रहते हैं और अपना अभिमत उन पर नहीं थोपते हैं।
जिनके माँ-बाप बच्चों और उनके परिवार को यथोचित सहारा और सम्मान देते हुए अपना जीवन शांति से बिताते हैं।
जिन माता-पिता द्वारा बच्चों को सही संस्कार दिए गए हैं और जो स्वयं संपन्न हैं।
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