जोनराज एवं श्रीवर
विल्हण एवं मम्मट
जोनराज एवं मेरूतुंग
विल्हण एवं मेरूतुंग
जोनराज, प्रज्ञाभट्ट एवं श्रीवर ने कल्हण की राजतरंगिणी को आगे बढ़ाया। उन्होंने द्वितीय राजतरंगिणी की रचना की जिसमें 1149-1450 ई. तक के कश्मीर कसे इतिहास के विषय में जानकारी मिलती है। श्रीवर द्वारा रचित जैना राजतरंगिणी से 1459 ई. से 1486 ई. तक के कश्मीर के इतिहास की जानकारी मिलती है। राजतरंगिणी का शाब्दिक अर्थ है- राजाओं की नदी। इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम कश्यपमेरू था।
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