पंचायतन शैली
बेसर शैली
नागर शैली
द्रविड़ शैली
5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ, मंदिर का निर्माण, मंदिर वास्तुकला की नागर शैली में किया जाएगा जिसमें पाँच गुंबद होंगे। सर्वप्रथम नगरों के निर्माण में इस शैली के प्रयोग होने के कारण इसे मंदिर वास्तुकला की नागर शैली कहते हैं। इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत के मौजूदा शासकों द्वारा पर्याप्त संरक्षण दिया गया। नागर शैली की पहचान-विशेषताओं में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है। नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं। ये मंदिर ऊँचाई में आठ भागों में बाँटे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश)। नागर शैली में मंदिर का निर्माण आम तौर पर एक उत्कीर्ण मंच पर किया जाता है जिसे ‘जगती’ कहा जाता है। मंडप, गर्भगृह के ठीक सामने मौजूद होता है, ये शिखर से सुशोभित होते हैं जो गर्भगृह के ठीक ऊपर होते है। इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया है।
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