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हाल ही में क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ (Kyasanur Forest Disease- KFD) के तीव्रता से निदान में एक नया ‘पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण’ (Point-Of-Care Test) अत्यधिक संवेदनशील पाया गया है। इस रोग को मंकी फीवर (Monkey Fever) के नाम से भी जाना जाता है। इसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा विकसित किया गया है। पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण में बैटरी से चलने वाला पॉलीमर चैन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction- PCR) एनालाइज़र शामिल है, जो एक पोर्टेबल, हल्का और यूनिवर्सल कार्ट्रिज-आधारित सैंपल प्री-ट्रीटमेंट किट और न्यूक्लिक एसिड एक्सट्रैक्शन डिवाइस (Nucleic Acid Extraction Device) है जो देखभाल के स्तर पर सैंपल प्रोसेसिंग में सहायता करता है। यह क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ के निदान में फायदेमंद साबित होगा क्योंकि इसका प्रकोप मुख्य रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में होता है, जहां परीक्षण हेतु अच्छी तरह से सुसज्जित लैब सुविधाओं का अभाव होता है। क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ → यह क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ वायरस (Kyasanur Forest disease Virus- KFDV) के कारण होता है, जो मुख्य रूप से मनुष्यों और बंदरों को प्रभावित करता है। वर्ष 1957 में इस रोग की पहचान सबसे पहले कर्नाटक के क्यासानूर जंगल (Kyasanur Forest) के एक बीमार बंदर में की गई थी। तब से प्रतिवर्ष 400-500 लोगों के इस रोग से ग्रसित होने के मामले सामने आए हैं। परिणामस्वरूप KFD पूरे पश्चिमी घाट में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरी है। यह वायरस मुख्य रूप से हार्ड टिकस ( हेमाफिसालिस स्पिनिगेरा), बंदरों, कृन्तकों (Rodents) और पक्षियों में उपस्थित होता है। मनुष्यों में, यह कुटकी/टिक नामक कीट के काटने या संक्रमित जानवर (एक बीमार या हाल ही में मृत बंदर) के संपर्क में आने से फैलता है। ठंड लगना, सिरदर्द, शरीर में दर्द और 5 से 12 दिनों तक तेज़ बुखार का आना आदि। इनके कारण होने वाले मृत्यु की दर 3-5% है। KFD वायरस के लिए बंदर मुख्य मेजबान (hosts) हैं।
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