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समष्टि' का विपरीतार्थी शब्द 'व्यष्टि' है|
प्रस्तुत शब्द में गुण सन्धि है| जब 'अ' और 'आ' के बाद 'इ' या ई', 'उ' या 'ऊ' और 'ऋ' स्वर आए तो दोनों के मिलने से क्रमशः ए, ओ और 'अर्' हो जाते हैं; जैसे - आ + ऊ = ओ महा + उर्मि = महोर्मि
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से दूर होने, निकलने आदि का भाव प्रकट होता है, वहाँ अपादान कारक होता है| छत से ईंट के गिरने के कारण यहाँ अपादान कारक है|
बुद्धिहीन' शब्द व्याकरण की दृष्टी से विशेषण संवर्ग में है|
एक बार कही बात को दोहराते रहना' वाक्यांश के लिए एक शब्द 'पिष्टपेषण' है|
चोर की दाढ़ी में तिनका' मुहावरे का सही अर्थ अपराधी का शंकाग्रस्त रहना है अर्थात दोषी सदैव सशंकित रहता है|
य,व अर्ध-स्वर हैं|
बरात, वसंत' शब्द वर्तनी की दृष्टी से शुद्ध शब्द युग्म है|
कर्पट तत्सम शब्द है, इसका तदभव रूप कपड़ा होगा|
दी गई पंक्ति के रचनाकार 'रैदास' हैं|