मैं मनुष्य देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा नहीं ।
वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।
सुनो! सुनो! वह गा रही है।
प्रिय महाशय, मैं आपकी आभारी हूँ।
उस वन में प्रातः काल के समय का दृश्य बहुत ही सुहावना होता था।
उस वन में सुबह के समय का दृश्य बहुत सुहावना होता था।
उस वन में प्रातः काल का दृश्य बहुत ही सुहावना होता था।
उस वन में सवेरे के समय का दृश्य बड़ा ही मनोरम होता था।
ज्योतिरीश्वर ठाकुर
अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध
किशोरीदास बाजपेयी
चंद्रधर शर्मा गुलेरी