Uptet Answer Key Junior 23-01-2022

02. 'पर्यध्ययन:' उदाहरण है -

  • 1

    कर्मधारय का

  • 2

    चतुर्थी तत्पुरुष का

  • 3

    प्रादि तत्पुरुष का

  • 4

    द्वितीया तत्पुरुष का

03. 'सङ्गात् सञ्जायते काम:' में सूत्र प्रवृत्त हुआ है -

  • 1

    आख्यातोपयोगे

  • 2

    जनिकर्त्तु: प्रकृति:

  • 3

    पराजेरसोढ़:

  • 4

    भुव: प्रभवश्च

04. 'सप्त चत्वारिंशत्' कौन संख्या है -

  • 1

    37 (सैंतीस)

  • 2

    47 (सैंतालिस)

  • 3

    34 (चौंतीस)

  • 4

    74 (चौहत्तर)

05. 'कर्मवाच्य' मे ंक्रिया किसके अनुसार होती है -

  • 1

    वचन के अनुसार

  • 2

    कर्म के अनुसार

  • 3

    लिङ् के अनुसार

  • 4

    कर्त्ता के अनुसार

06. धर्म पालने करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है। मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के बुरे-भले कामों का ज्ञान दूसरी ओर आलस्य और स्वार्थपरता रहती है। बस मनुष्य इन्ही दोनों के बीच में पड़ा रहा है। अंत में यदि उसका मन पक्का हुआ, तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपना धर्म पालन करता है, पर उसका मन दुविधा में पड़ रहा है, तो स्वार्थपरता उसे निश्चित ही घेरेगी और उसका चरित्र घृणा के योग्य हो जायेगा। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि आत्मा जिस बात को करने की प्रवृत्ति दें, उसे बिना स्वार्थ सोचें, झटपट कर डालना चाहिए। इस संसार में जीतने बड़े-बड़े लोग हुए है सभी ने अपने कर्तव्य को सबसे श्रेष्ठ माना है, क्योंकि जितने कर्म उन्होंने किए उन सबने अपने कर्तव्य पर ध्यान देकर न्याय का बर्ताव किया। जिन जातियों में यह गुण पाया जाता है। वे ही संसार में उन्नति करती है और संसार में उनका नाम आदर से लिया जाता है। जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं। 'अपना मतलब निकालने वाला' के लिए उचित शब्द क्या है -

  • 1

    स्वार्थपरक

  • 2

    स्वार्थपरता

  • 3

    कुटिल

  • 4

    स्वार्थी

07. धर्म पालने करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है। मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के बुरे-भले कामों का ज्ञान दूसरी ओर आलस्य और स्वार्थपरता रहती है। बस मनुष्य इन्ही दोनों के बीच में पड़ा रहा है। अंत में यदि उसका मन पक्का हुआ, तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपना धर्म पालन करता है, पर उसका मन दुविधा में पड़ रहा है, तो स्वार्थपरता उसे निश्चित ही घेरेगी और उसका चरित्र घृणा के योग्य हो जायेगा। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि आत्मा जिस बात को करने की प्रवृत्ति दें, उसे बिना स्वार्थ सोचें, झटपट कर डालना चाहिए। इस संसार में जीतने बड़े-बड़े लोग हुए है सभी ने अपने कर्तव्य को सबसे श्रेष्ठ माना है, क्योंकि जितने कर्म उन्होंने किए उन सबने अपने कर्तव्य पर ध्यान देकर न्याय का बर्ताव किया। जिन जातियों में यह गुण पाया जाता है। वे ही संसार में उन्नति करती है और संसार में उनका नाम आदर से लिया जाता है। जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं। 'कायर' की भाववाचक संज्ञा है -

  • 1

    कायरपन

  • 2

    कायरतत्व

  • 3

    कायरता

  • 4

    अकायरता

08. धर्म पालने करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है। मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के बुरे-भले कामों का ज्ञान दूसरी ओर आलस्य और स्वार्थपरता रहती है। बस मनुष्य इन्ही दोनों के बीच में पड़ा रहा है। अंत में यदि उसका मन पक्का हुआ, तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपना धर्म पालन करता है, पर उसका मन दुविधा में पड़ रहा है, तो स्वार्थपरता उसे निश्चित ही घेरेगी और उसका चरित्र घृणा के योग्य हो जायेगा। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि आत्मा जिस बात को करने की प्रवृत्ति दें, उसे बिना स्वार्थ सोचें, झटपट कर डालना चाहिए। इस संसार में जीतने बड़े-बड़े लोग हुए है सभी ने अपने कर्तव्य को सबसे श्रेष्ठ माना है, क्योंकि जितने कर्म उन्होंने किए उन सबने अपने कर्तव्य पर ध्यान देकर न्याय का बर्ताव किया। जिन जातियों में यह गुण पाया जाता है। वे ही संसार में उन्नति करती है और संसार में उनका नाम आदर से लिया जाता है। जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं। 'निर्बलता' शब्द में उपसर्ग और प्रत्यय का सही विकल्प है -

  • 1

    निर + बलत + आ

  • 2

    निर + बल + ता

  • 3

    निर + बल + अता

  • 4

    निर् + बल + ता

09. धर्म पालने करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है। मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के बुरे-भले कामों का ज्ञान दूसरी ओर आलस्य और स्वार्थपरता रहती है। बस मनुष्य इन्ही दोनों के बीच में पड़ा रहा है। अंत में यदि उसका मन पक्का हुआ, तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपना धर्म पालन करता है, पर उसका मन दुविधा में पड़ रहा है, तो स्वार्थपरता उसे निश्चित ही घेरेगी और उसका चरित्र घृणा के योग्य हो जायेगा। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि आत्मा जिस बात को करने की प्रवृत्ति दें, उसे बिना स्वार्थ सोचें, झटपट कर डालना चाहिए। इस संसार में जीतने बड़े-बड़े लोग हुए है सभी ने अपने कर्तव्य को सबसे श्रेष्ठ माना है, क्योंकि जितने कर्म उन्होंने किए उन सबने अपने कर्तव्य पर ध्यान देकर न्याय का बर्ताव किया। जिन जातियों में यह गुण पाया जाता है। वे ही संसार में उन्नति करती है और संसार में उनका नाम आदर से लिया जाता है। जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं। संसार के बड़े-बड़े लोगों ने सबसे श्रेष्ठ माना है -

  • 1

    परोपकार को

  • 2

    सदाचार को

  • 3

    अपने कर्तव्य को

  • 4

    उत्तम चरित्र को

10. धर्म पालने करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है। मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के बुरे-भले कामों का ज्ञान दूसरी ओर आलस्य और स्वार्थपरता रहती है। बस मनुष्य इन्ही दोनों के बीच में पड़ा रहा है। अंत में यदि उसका मन पक्का हुआ, तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपना धर्म पालन करता है, पर उसका मन दुविधा में पड़ रहा है, तो स्वार्थपरता उसे निश्चित ही घेरेगी और उसका चरित्र घृणा के योग्य हो जायेगा। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि आत्मा जिस बात को करने की प्रवृत्ति दें, उसे बिना स्वार्थ सोचें, झटपट कर डालना चाहिए। इस संसार में जीतने बड़े-बड़े लोग हुए है सभी ने अपने कर्तव्य को सबसे श्रेष्ठ माना है, क्योंकि जितने कर्म उन्होंने किए उन सबने अपने कर्तव्य पर ध्यान देकर न्याय का बर्ताव किया। जिन जातियों में यह गुण पाया जाता है। वे ही संसार में उन्नति करती है और संसार में उनका नाम आदर से लिया जाता है। जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं। धर्म पालन करने में बाधा डालने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-सी हैं -

  • 1

    आलस्य की अधिकता।

  • 2

    धर्म का ज्ञान न होना।

  • 3

    जानकारी की कमी।

  • 4

    कमजोर मन, उद्देश्य का निश्चित न होना तथा चंचल मनोवृत्ति का होना।

Page 1 Of 15
Test
Classes
E-Book