काँसे से निर्मित शिव का नर्तक स्वरूप चिदम्बरम् (तमिलनाडु) स्थित प्रख्यात नटराज मूर्ति का निर्माण चोल वंश ने किया था जो काँसे की बनी हुई है।
नटराज दो शब्दों के समावेस से बना है नट (अर्थात् कला) और राज।
तैलीय रंग सर्वप्रथम भारतीय और चीनी चित्रकारों द्वारा बौध्द चित्रों के लिए पश्चिमी अफगानिस्तान में 5वीं और 10वीं शताब्दी के मध्य प्रयोग किया गया था।
मध्य अफगानिस्तान में बामियान गुफाओं में बौध्द चित्रकला विश्व के सबसे प्राचीन ज्ञात तैल चित्रकारी हैं।
पाणिनी 500 ई.पू. संस्कृत भाषा के सर्वप्रथम व्याकरणकर्ता थे।
इनकी प्रसिध्द रचना अष्टाध्यायी में 4,000 सूत्र हैं जिनमें ध्वन्यात्मकता और व्याकरण के नियम हैं।
दूसरी शताब्दी ई.पू. में पतंजलि ने अष्टाध्यायी पर महाभाष्य नामक टीका लिखी।
महाभाष्य में अष्टाध्यायी को सर्ववेद-परिषद शास्त्र कहा गया है।
आदि शंकराचार्य ने चार मठों (श्रृंगेरी, बद्रीनाथ, द्वारका तथा पुरी) को स्थापित किया तथा उनमें मठाधीशों की नियुक्त की, जो बाद में स्वयं शंकराचार्य कहलाने लगे।
स्मार्त सम्प्रदाय में शंकराचार्य शंकर के अवतार मान जाते हैं।
इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या प्रस्तुत की है।
वेदांत का भी प्रसार किया है।
कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित एहोल शिलालेख चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय के दरबारी कवि और मंत्री रवि कीर्ति द्वारा रचित है।
इस शिलालेख में पुलकेशिन की हर्षवर्ध्दन पर विजय और उनकी उपलब्धियों का वर्णन है।
इसे प्राचीन कन्नड़ लिपि का प्रयोग करके संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
दक्षिण भारतीय द्रविड़ स्थापत्य शैली में निर्मित विरूपाक्ष मंदिर हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
विरूपाक्ष मंदिर पंपापति तथा श्री लोकेश्वर महाशिला प्रसाद के नाम से भी जाना जाता है।
इसका निर्माण लोकमहादेवी (विक्रमादित्य द्वितीय की प्रथम पत्नी) द्वारा कांचीपुरम् के पल्लवों पर विक्रमादित्य द्वितीय की विजय प्राप्ति के लिए इसे मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
इसका प्रमुख वास्तुकार गुण्ड थे, जिसे त्रिभुवनाचार्य की उपाधि से विभूषित किया गया था।
महाबलिपुरम् में रथ मंदिरों का निर्माण पल्लव शासकों द्वारा करवाया गया था।
रथ मंदिर एकाश्मक पत्थर से निर्मित है।
यह एक शिला में स्थित मंदिर है जो एक पत्थर को काटकर बनाया गया है।
इनमें प्रमुख रथ हैं- नकुल रथ, सहदेव, रथ, अर्जुन रथ, भीम रथ, धर्मराज रथ, द्रौपदी रथ तथा प्रवेश रथ।
इन सातो रथों को सप्तपैगोडा कहा जाता है।
महाबलिपुरम् (मामल्लापुरम्) निर्मित सभी स्मारकों का विकास नरसिंह वर्मन प्रथम महामल्ल के काल में हुआ।
महाबलिपुरम् के एकाश्मक मंदिर को यूनेस्को ने वर्ष 1984 में विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया था।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम के शासन काल में किया गया था।
कैलाशनाथ का प्रसिध्द मंदिर एलोरा में ही स्थित है।
यह प्राचीन हिंदू मंदिरों में चट्टानों द्वारा निर्मित सबसे विशाल मंदिर है।
चित्रकला की गांधार शैली का सूत्रपात कुषाण काल में महायान सम्प्रदाय द्वारा किया गया।
ये बुध्द एवं बोधिसत्व की मूर्ति पूजा में आस्था रखते थे।
गांधार कला की विषयवस्तु भारतीय तथा शैली यूनानी-रोमन थी।
इसलिये गांधार शैली को ग्रीको - रोमन या हिन्दू - यूनानी कला भी कहा जाता है।
पंचायतन मंदिर निर्माण की विशिष्ट शैली है इसके नाम कि उत्पत्ति संस्कृत शब्द पंच (पांच) और आयतन (मुक्त) से हुआ है।
जिसमें मुख्य देवता शिव या किसी अन्य देवता या देवी को मुख्य मंदिर में स्थापित किया जाता था और उसके चारों ओर निर्मित गौण मंदिरों में चार अन्य अनुचर देवता रखे जाते थे।
इस शैली का उदाहरण- खजुराहों में कंदरिया महादेव मंदिर, भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर, उत्तर प्रदेश के देवगढ़ में दशावतार मंदिर है।